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________________ (ए) सद्यायमाला. D ain-RA - - - - - - - डिकरी जे जन रंजीया, वश कस्या बहु जन लोक रे ॥ पूव दीधे न ते । ताहेरा, हिमुनिना तरु फोक रे । शांतिः ॥ १५ ॥ गुरुप्रसादें गुणहीन ने, होवे जे तुं. गुण. छिरे॥ तुं गुण मत्सरी मत होये, कर निज जीव नी शुछि रे ।। शांति ॥ १६॥ संयम योग मूकी करी, वश कस्या जे जन लोक रे ॥ शिष्य गुरु नक्त पुस्तक नस्या, अंते दीये समविणुं शोक रे। शांति ॥१७॥ प्रशम.समता सुख जलधिमां, सुर नर सुख एक बिंद रे। तेणें तुं सिंच सम वेलडी, मूकी दे अवर सम दंद रे॥शांति ॥१॥ एक कण विश्व जंतु परें, तुं वस जीव समजाव रे॥ सर्व मैत्री सुधापान | पैं, सकल सुख सन्मुख लाव रे ।। शांति॥१॥आप गुणवंत गुण रंजी ज, दीन उःखी देखी जुःख चूर रे ॥ निर्गुणी देसविरति रही, सकल मुनि सुख शुचि पूर रे ।। शांति ॥२०॥ति अध्यात्म सद्याय॥ ॥अथ मधुविंड्या दृष्टांत सद्याय प्रारंजः॥ ॥ ढाल ॥ सरसती मुज रे, माता द्यो वरदान रे ॥ गौतम रे, नांखे श्रीवर्धमान रे ॥ को गिरुआ रे, विरुवा विषयतुं ध्यान रे ॥ विषयारस रे, जे मधुबिंछ समान रे ॥त्रुटक ॥ मधुबिंछ सरिखो विषय निरखो, जोपरखो चित्त शुं॥ नर जनम हास्यो मोह गास्यो, पिम नास्यो पापगुं ॥ कंतार पडियो नाग नडियो, कोश् देवाणु प्पियो॥ वडवृद जडियो वेगें चडीयो, रंक रडीयो बप्पियो ॥१॥ ढाल ॥ वड हेग्ल रे, कूप अडे अस राल रे ॥ दोय अजगर रे, मगर जिश्या विकराल रे॥ चिहुं पासे रे, चार क्षुयंगम काल रे॥ वली ऊपर रे, महोटो जे महुयाल रे ॥ त्रुटक ॥ महु याल माखी रगत चाखी, चंचु राखीनें रही ॥ धंधोलतो गजराज धायो, पडत वडवाश् ग्रही ।। वडवाश कापे उंदर आपे, ताप संतापें ग्रह्यो॥ मधु थकी गलियो बिंड ढलीयो, तेणे सुखलीणो रह्यो ॥२॥ ढाल ॥ एह सं कट रे, बोडण देव दयाल रे ॥ फुःख हरवा रे, विद्याधर ततकाल रे । उ | करवा रे, धरियुं तास विमान रे ॥ आवे रे, 'मधुबिंड करे सान रे ।। ॥त्रुटक ॥ मधुबिंडू चाखे वचन जांखे, करे लालच लखवली ॥ वार वार राखे सान पाखे, रहो दणएक पर रली ॥ तस खेचर मलियो. वेग-वलि यो, रंक रूलियो ते नरु ॥मधुर्विद्य चाटे विषय साटे, कह्यो उपनय जग गुरु ॥३॥ ढाल ॥ चोराशी लख रे ॥ गतिवासी कांतार रे॥ मिथ्यामति -- - A
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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