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________________ · सद्यायमाला... - da - - - - - R - राज ॥सो॥ ए॥ वैलारगिरि जा चड्या जीरे, मुनिद रिसण ऊमंग || - ॥ सहु परिवारें परवस्या जीरे, पहोता गिरिवरभंग ॥ सो ॥ ३०॥ दोय मुनि अणसण उच्चरी जी रे, जीले ध्यान मकार ॥ मुनि देखी-बिलखा यया जीरे, नयणे नीर अपार ॥ सो॥३१॥ गदगदशब्दें बोलती जी। रे, मली बत्रीशे नार ॥ पिजडा बोलो बोलडा जीरे, जिम सुख पामे चिन्न । सो ॥ ३५ ॥ अमे तो अवगुणें नरयां जी रे, तुं सही गुण नंमार ॥ मुनिवर ध्यान चूका नही जी रे, तेहने वचनें लगार ॥ सो० ॥३३॥ वीरा नयणें निहालीयें जीरे, जिम मन थाये प्रमोद ॥ नयण उघाडी जो श्य जी रे, माता पामे मोद ॥सो ॥ ३४ ॥ शालिन माता मोहने जी ।। . रे, पोहोता अमर विमान । महाविदेहें सीऊशे जीरे, पामी केवलज्ञान ॥ सो ॥ ३५ ॥ धनो धर्मी मुक्तं गयो जीरे, पामी शुकल ध्यान ॥ जे : नर नारी गावशे जी रे, समयसुंदरनी वाण ॥ सो ॥ ३६॥ ॥अथ अज्ञान दोष अंधेर नगरीनी सद्याय ॥ ॥ अज्ञान महा अंधेर नगरें, जेहनी नहीं आदि रे ॥ मिथ्यात्व मंदि र मोह महानिशि, पलंग जिहां प्रमाद रे॥१॥जीव जाग तुं गश् रात डी, नगवंत ऊग्यो नाण रे ॥ गति च्यार ते श्श उपलां ने, कषाय पाश्या चार रे ॥ त्रांति जर. सुन्जर नरियो, वाहण वेद विचार रे ।। जीव ।। २॥ तृष्णा तला पाथरीने, गोदड महा गर्व रे ॥ गति जंग गालमसू रीयां ते, सज्या कुमति सर्व रे ॥जीव० ॥३॥ रुशना वनी तिहां राग नी ने, आउ मद उसोच रे, पड्यो पासुं न पालटे ते, तज्या सहु संको चरे। जीव ॥४॥ स्नेह सांकलें सांकटयो ने, मोहनी मदिरापान रे॥ सूतो पण नवि सल सले, नहीं शुद्धि सुमतिने सान रे ॥जीव ॥५॥ लख चोराशी सुपन लाधां, फरी फरी बहु वार रे ॥ कुमति वास्यो वके बहुविध, इजी न आव्यो पार रे ॥जीव० ॥६॥ हर्षने रह्यो शोक हेरी, संयोगने वियोग रे॥ लोग जवनी नासकीने, रूप त्यां बहु रोग रे॥जी व ॥ ७॥ जंघे त्यां वसे आपदाने, जागे त्यां वली जोख रे ॥ कुटुंव । मेलो कारमो जेम, गगन वादल गोखरे.॥ जीव ॥ ७॥ आखरे जावु || एकखाने, कोइ न आवे केड रे॥ वाला ,वलावी वले पानां, सहु स्नेही । नेह निमेड रे ॥ जीव ॥ ए॥ जिनवचनें जे नर जागिया ते, पाम्या - Adamd- - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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