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**Composed by Somasen Bhattaraka**
**One should avoid the company of the following wicked people at the time of meals:**
* **Those who are:**
* Extremely young
* Extremely old
* Extremely dark
* Extremely delusional
* Impotent
* Suffering from rectal prolapse
* Excluded by the five (Pancha)
* Devotees who earn their livelihood by worshipping deities (Devarchana)
* Those who eat offerings to deities (Nirmalya Bhoji)
* Those who kill living beings (Jiva Vinashka)
* Traitors to the king (Rajadrohi)
* Traitors to the Guru (Gurudroh)
* Those who obstruct worship and religious activities (Pooja Pidan Karaka)
* Extremely talkative
* Extremely deceitful
* Deformed
* Extremely short
* Those who are of a different caste (Vijaatiya)
* Wicked
* Dirty and wearing unclean clothes
* Unbathed
* Those with a mutilated body part
* Slanderers
* Those who are wheezing or coughing
* Those with boils, sores, or other wounds
* Lepers
* Those suffering from nasal polyps
* Those who vomit
* Those with false vision (Mithyadristi)
* Those with physical deformities (Vikari)
* Those who are insane (Unmatta)
* Jokers
* Those who are not content (Santoshi)
* Hypocrites
* Those who wear a mark on their body (Lingi)
* Those who engage in pointless arguments (Vitanda)
* Those who indulge in all seven vices
* Those who are immoral
* Those with wicked intentions
* Those who are filled with the four passions (Kashaya)
* Those who are miserable
* Those who inspire disgust upon seeing them
* Those who are arrogant
**One should also avoid seeing the following at the time of meals:**
* Dogs
* Pigs
* Chandala
* Mlechchha
* Violent people
**One should eat facing east or west, whichever is comfortable. One should perform religious activities facing north, but avoid facing south during meals.**
* **Facing east during meals:** Increases lifespan
* **Facing north during meals:** Brings fame
* **Facing west during meals:** Attracts Lakshmi (wealth)
* **Facing south during meals:** Brings no benefit
**[155, 161, 162, 163]**
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१८८
सोमसेनभट्टारकाविरचित
अतिबालोऽतिवृद्धश्चातिश्यामोऽतिमतिभ्रमः ॥ १५८ ।। पण्डश्च पश्चिमद्वारी पञ्चभिश्च बहिष्कृतः। देवार्चकश्च निर्माल्यभोक्ता जीवविनाशकः ॥ १५९ ।। राजद्रोही गुरुद्रोही पूजापीडनकारकः । वाचालोऽतिमृषावादी वक्राङ्गश्चातिवामनः ॥ १६० ॥ इत्यादिदुष्टसंसर्ग सन्त्यजेत्पंक्तिभोजने ।
श्वानसूकरचाण्डालम्लेच्छहिंसकदर्शनम् ॥ १६१ ॥ अब पक्तिमें सामिल न होने योग्य मनुष्योंको बताते हैं जो विजातीय हो-अपनी जातिका न हो, दुष्ट हो, मैले-कुचैले कपड़े पहने हो, स्नान किये न हो, जिसके शरीरका कोईसा अंग छिन्न भिन्न हो गया हो, जो निन्दक हो, जिसको सांस चढ़ रहा हो, खांसी चलती हो, जिसके शरीरमें फोड़ा फुसी वगैरहके घाव हो रहे हों, जो कोढ़ी हो, जिसके पीनसका रोग हो रहा हो, उल्टी होती हो, जो मिथ्यादृष्टि हो, विकारी हो, उन्मत्त हो, ठट्टेबाज हो, सन्तोषी न हो, पाखंडी हो, शरीरमें कुछ न कुछ चिन्ह रखनेवाला लिंगी (टौंगी ) हो, वितंडा करनेवाला हो, सातों व्यसनोंका सेवन करनेवाला हो, दुराचारी हो, दुष्ट आशयवाला हो, चारों कषायोंसे युक्त हो, दीन हो, जिसके शरीरको देखकर ग्लानी आती हो, जो अभिमानी हो, अत्यन्तही वालक हो, अत्यन्त बूढ़ा हो, अत्यन्त काला हो, जिसकी बुद्धिमें अत्यन्त भ्रम (विकार ) हो गया हो, जो नपुंसक हो, जिसकी गुदा बह रही हो, पंचोंने जिसको बहिष्कृत कर दिया हो, जिसके जिनपूजाकी आजीविका हो-देवपूजा करके उदरनिर्वाह करता हो, जो निर्माल्य-भोजी हो, जीवोंकी हिंसा करनेवाला हो, राजद्रोही हो, गुरुद्रोही हो, पूजादि धर्मकार्योंमें विघ्न पाड़नेवाला हो, अत्यन्त वाचाल हो, अत्यन्त झूठ बोलनेवाला हो, जिसका शरीर टेढ़ामढ़ा हो और बिल्कुल बौना हो, इत्यादि तरहके मनुष्योंको भोजनमें सामिल न करे तथा भोजनके समय, कुत्ते, सूकर, चांडाल, म्लेच्छ, हिंसक आदिको आँखसे न देखे ॥१५५,१६१॥
प्राङ्मुखस्तु समश्नीयात्प्रतीच्यां वा यथासुखम् । उत्तरे धर्मकृत्येषु दक्षिणे तु विवर्जयेत् ।। १६२ ॥ आयुष्यं प्राङ्मुखो मुंक्ते यशस्वी चोत्तरामुखः।
श्रीकामः पश्चिमे भुंक्ते जातु नो दक्षिणामुखः ॥ १६३ ॥ पूर्व दिशाकी ओर मुख कर भोजन करे अथवा पश्चिमकी ओर मुख कर भोजन करे । जैसा सुभीता दिखे वैसा करे । तथा धार्मिक कामों में उत्तरकी ओर मुख कर भोजन करे, किन्तु भोजनके समय दक्षिणकी ओर मुख न करे । पूर्वकी ओर मुखकर भोजन करनेसे आयु बढ़ती है, उत्तरकी ओर मुखकर भोजन करनेसे यश फैलता है और पाश्चमकी ओर मुखंकर भोजन करनेसे लक्ष्मीका चहीता होता है-उसे लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है तथा दक्षिणकी ओर मुखकर भोजन करनेसे कुछ भी नहीं मिलता ॥ १६२-१६३॥ . . . . . . . . . . .