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(६१) घटामतां जवू; जेमके सनत्कुमार अने माहें ए पुग के ) हिक एटले बन्ने देवलोकमांना देवोनां शरीरोनी उंचाश्नुं प्रमाण व हाथर्नु होय बे, ब्रह्म अने लांतक ए (जुग के ) बे देवलोकमां पांच हाथ होय , शुक्र अने सहस्रार ए (जुग के० ) बे देवलोकमां चार हाथ होय , ए . त्रण कि कही अन यानत, प्राणत, आरण तथा अच्युत ए (चज के) चार देवलोकमांत्रण हाथ होय बे, (गेविज के ) नव अवेयकमां बे हाथ होय , अने (अणुत्तरे के०) पांच अनुत्तरवासी देवलोकमांना देवोनां शरीरोनुं प्रमाण एक हाथर्नु होय . ए रीते (शकिक परिहाणी के ) एकेक हाथनी हाणी करतां जq ते वारे पूर्वोक्त मान थाय, ए सर्व जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण उत्सेधांगुलनी रीते जाणवू ॥३३॥ हवे जीवोना आउखानुं बीजं धार कहे . . बावीसा पुढवीए, सत्तय आजस्स तिनि वाजस्स ॥ वास सहस्सा दस तरु,गणाण तेज तिरत्ताऊ ॥ ३४ ॥