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लोकांतिक देवो ढे तेने रहेवानां स्थानक कही बतावे बे. त्यां प्रथम किल्विषिया देवानां स्थानक कहे बे. एक तो पहेला अने वीजा देवलोकनी नीचे ऋण पल्योपसना युवाला रह्या बे अने बीजा वली त्रीजा तथा चोथा देवलोकनी नीचे त्रण सागरोपमना युवाला रह्या बे, तथा त्रीजा वली पांचमा देवलोकनी नीचे तेर सागरोपमना आयुवाला रह्या ढे. ए त्रण प्रकारना किल्विषिया देवो चंमालप्रायः जाणवा तथा वली पांचमा देवलोकने बेडे उत्तर ने पूर्वनी अभ्यंतर कृष्णराजीमां नव प्रकारना लोकांतिक देवो रहे बे, एनुं या सागरोपमनुं यु बे.
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ए सर्व देवोना वधा मली एकसो ने अहाणुं नेद शास्त्रोमां कह्या बे, ते आ प्रमाणे: - जवनपतिना दश नेद, चर ज्योतिषीना पांच नंद, स्थिर ज्योतिबीना पांच जेद, वैताढ्यने विषे रहेनारा तिर्यग्जूं। जक देवोना दश नेद, नारकी जीवोने दुःख आपनारा परमाधामीना पंदर नेद, व्यंतरना आठ भेद, वाणव्यंतरना आठ भेद, किल्विषियाना त्रण नेद, लोकांतिकना नव भेद, वार देवलोकना वार नेद,