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मियां अथवा चर्मची टिका, तथा वनवागुल अथवा वयुली प्रमुख ए (चेव के ) निश्चे लोकमां प्रसिद्ध बे, अने (नरलोगाउँ वाहिँ के ) मनुष्यलोकनी वहार ( समुग्गपरकी के ) समुज पदीठ, तथा (विययपरकी के०) वितत पदी होय . ते मनुष्यलोकनुं प्रमाण शास्त्रोमां आवी रीते कह्यु :जंबुढीप, धातकी खंग तथा पुष्करवर द्वीपना अर्ध नाग सुधी मनुष्योनी वस्ती एटले ए अढी दीपमां मनुष्यो . ते अढी छीपमांना प्रथम जंबुछीपने चोफेर खानी पेठे लवण समुल वीटी रह्यो ने तथा वीजा धातकी खंगने कालोदधि वीटी रह्यो ले अने अढी छीपनी चोफेर स्वर्णमय भानुष्योत्तर पर्वत किहानी पेठे वेष्टित थइ रहेलो बे. ए नरलोकक्षेत्रनुं प्रमाण एकंदर पीस्तालीश लाख योजननुं का . हांज मनुष्योनां जन्म तथा मरणनो संजव होवाथी ए मनुष्यलोक कहेवाय डे, तेथी वहार उपर कहेलां बे जातिनां पदी होय , तेमां समुशवत् समुज पतीनी पांख बेसती वखते संकोचने पामे , अने वितत पदीनी पांख सर्वदा विस्तारेलोज होय . ए सर्व खेचर जीवो जाणवा ॥२॥