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________________ aag as a potos seats dasva ste/et ५ इस ग्रन्थके संशोधनार्थ ४ प्रतियोंकी सहायता लीगई है. जिनमेंसे एक तो वि० संवत् १७८० की, दूसरी सं. १८०४ की, तीसरी सं. १९२० की और चौथी सं १९ ५३ की लिखी हुई है. इनमेंसे सं. १७८० की प्रतिसे हमें बहुत कुछ सहायता मिली है. क्योंकि यह प्रति ग्रन्थनिर्माण होनेके थोड़े ही दिन पीछेकी लिखी हुई होंनेसे बहुत कुछ शुद्ध है. अन्य प्रतियोंमें अनभिज्ञ लेखकोंकी असावधानीकी परम्परासे बहुत कुछ पाठान्तर पाया गया है. अन्तमें ग्रन्थकत्ती व प्रकाशक महाशय के परिश्रमपर विचार करके पाठकगण इस ग्रन्यसे अपना और अपनी सन्ततिका हितसाधन करेंगे ऐसी आशा करके इस प्रस्तावनाको पूर्ण करता हूं । मुम्बयी. १७-१२-१९०३ ई० ..} वि. सं. विपयनाम. ope seen १ पुण्यपचीसिका. २. शतअटोत्तरी. प्रस्तावना. सूचीपत्र. पृष्ठाङ्क. | वि. सं. विषयनाम. ८ ३३ ५५ ८४ सर्वसज्जनोंका हितैषी दास नाथूराम, प्रेमी जैन. ३ द्रव्यसंग्रह. ४ चेतन कर्मचरित्र. ५ अक्षरवत्ती सिका. ६ जिनपूजाटक. ८८ ९१ ७ फुटकर कविता. ८ चतुविशति जिनस्तुति ९२ पृष्ठाङ्क ९ परमात्माकी जयमाला. १०४ १० तीर्थंकरजयमाला. १०५ ११ भुनिराज जयमाला. १०६ १२ अहिक्षितिपार्श्वनाथस्तुति. १०७ १०८ १०९ १३ शिक्षावली. ( शिक्षाछंद ). १४ परमार्थपदपंक्ति. १५ गुरुशिष्यप्रश्नोत्तरी. ११८ १६ मिथ्यात्वविध्वंसनचतुर्दशी. ११९ do 50 do 5p de 50 de 350 35
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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