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ब्रह्मविलासमे
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पाय रह्यो, तैसें जीवमूरतीक पुग्गल प्रतापसों। यह बात सिद्ध भई जीव मूरतीकमई,बंधकी अपेक्षा लई नैव्योहार छापसो॥ पुग्गलकम्मादीणं, कत्ता ववहारदो दुणिचयदो।
चेदणकम्मा णादा, सुद्धणया सुद्ध भावाणं ॥८॥ १ पुदगल करमको करैया है चिदानंद, व्योहार प्रवान इहां फेर
कछु नाहीं है । ज्ञानावर्णी आदि अष्ट कर्मको करता है, रागा-1 दिक भाव धरै आप उहि पांही है ॥ शुद्ध नै विचारिये तो राग है है कलंक याकै, यह तो अटक सदा चेतना सुधाही है । अनंत,
ज्ञान परिणाम तिनको करैया जीव, सास्वतो सदीव चिरकाल है है आपमाही हैं ॥ ८॥
ववहारा सहदक्खं, पुग्गलकम्मफलं पभुजेदि।। । आदा णिच्चयणयदो, चेदणभावं खु आदस्स ॥९॥ है व्योहार नै देखिये तो पुग्गलके कर्मफल, नाना भांति सु-है खदुःख ताको भुगतैया है। उपजाये आपुतें ही शुभ ओ अशुभ कर्म, ताके फल साता ओ असाताको सहैया है ॥ निश्चनय दे, खिये तो यह जीव ज्ञानमई, अपुने चेतन परिणामको करैया है। है तातै भोक्ता पुनि सुचेतन परिणामनिको, शुद्धनै विलोकिये तो है १. सबको लखैया है ॥९॥
अणुगुरुदेहपमाणो, उवसंहारप्पसप्पदो चेदा । १ असमुहदो ववहारा णिचयणयदोअसंखदेसोवा ॥१०॥ इ देहके प्रमान राजै चेतन विराजमान, लघु और दीरघ शरीहै रके उदैसों है । ताहीके समान परदेश याके पूरि रहे, सूक्ष्म औ हु बादर तन धरै तहां तैसो है । व्यवहारनय ऐसो कह्यो समुद्धात
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