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PREMIEREpramebeneranapranRaosahe nPROPOROPES . शतअष्टोत्तरी.
२७ निशचै शुद्ध गयो अपनो गुण, परके भाव भिन्न करि खोय। १ हंस अंश उज्वल है जब ही, तव ही जीव सिद्धसम सोय ॥८॥ काल अनादि भये तोहि सोवत, अब तो जागहु चेतन जीव ।। अमृत रस जिनवरकी वानी, एकचित्त निशचैकर पीव ।। पूरव कर्म लगे तेरे संग, तिनकी मूर उखारहु नींव। है ये जड़ प्रगट गुप्त तुम चेतन, जैसे भिन्न दूध अरु घीव ॥ ८॥
समान सवैया. काल अनादि ते फिरत फिरत जिय,अव यह नरभव उत्तम पायो। समुझि समुझि पंडित नर प्रानी, तेरे कर चिंतामणि आयो॥ घटकी आँखै खोल जोहरी, रतन जीव जिनदेव बतायो। तिलमें तैल वास फूलनिमें, यो घटमें घटनायक गायो ॥ ८५॥
सवैया. है हंसको वंश लख्यो जवते, तब जु मिट्यो भ्रम घोर अंधेरो।।.
जीव अजीव सबै लख लीने, सु तत्त्व यहै जिनआगमकेरो॥ है तायके आवत ही अहि भागे, सु टि गयो भवबंधन घेरो। १. सम्यक शुद्ध गहो अपनो गुन,ज्ञानके भानु कियो है सवेरो॥८६॥
कबित्त. उदै करै जो भानु पच्छिमकी दिशा आय, उड़िके अकाश है मध्य जाय कहूं धरती । अचल सुमेरु सोऊ चल्यो जायअवनीहै पै, सीतता स्वभाव गहै आगि महा जरती ॥ फूलै जोपै कौल कई
पर्वतकी शिलानपै, पाथरकी नाव चलै पानीमाहिं तरती । चनलिके ब्रह्मड जोपै तालमधि जाहि कहूं, तऊ विधनाकी लेखि
लिखी नाहिं टरती॥ ८७॥ PronvaroenasapanaAQUARRRRRRRRRRom
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