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ब्रह्मविलास में
दोहा.
परम धरम अवधारि तू, पर संगति कर दूर ||
ज्यों प्रगटै परमातमा, सुख संपति रहे पूर ॥ ७ ॥ धनुषबद्धचित्रम्
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