________________
२९०
ब्रह्मविलास में
आनन देखै परमको, सो आनें शिव ऐन ॥ ८६ ॥ 'लो' गनको लागो रहे, 'भ' वजल वोरै आन ॥ ये द्वयंअक्षर आदिके, तजहु ताह पहिचान ॥ ८७ ॥ जित देखहु तित देखिये, पुद्गलहीसों प्रीत ॥ पुद्गल हारे हार अरु, पुद्गल जीते जीत ॥ ८८ ॥ पुद्गलको कहा देखिये, धरै विनाशी रूप ॥ देखहु आतम सम्पदा, चिद्विलासचिद्रूप ॥ ८९ ॥ भोजन जल थोरो निर्पेट, थोरी नींद कपाय ॥ सो मुनि थोरे कालमें, वसहिं मुकतिमें जाय ॥ ९० ॥ जगत फिरत के जुगै भये, सो कछु कियो विचार ॥ चेतन अब किन चेतहू, नरभव लह अतिसौर ॥ ९१ ॥ दुर्लभ दश दृष्टान्तसों, सो नर भव तुम पाय ॥ विषय सुखनके कारणे, सर्वसे चले गँवाय ॥ ९२ ॥ ऐसी मति विभ्रम भई, विपयन लागत धय ॥ कै। दिन के छिन कै घरी, यह सुख थिर ठहराय ॥ ९३ ॥ देखहु नो निज दृष्टिसों, जगमें घिर कछु आह ॥ सबै निशी देखिये, को तज गहिये काह ॥ ९४ ॥
॥
www.w
६
नहीं मानता है, अपने हृदय में भगवान के वचनों को धारण करता और परम अर्थात् शुद्धा त्माका 'मनन' मुख अर्थात् रूप अवलोकन है, वह यथार्थ मोक्ष प्राप्त करता है.
३ युग.
लोभ. २ अत्यन्त - इस शतकके ९१. ९२. ९३. नं.
def gethot
४ श्रेष्ठ. ५ सर्वस्व. ६ दौड़के. के दोहे वैराग्यपच्चीसीमें भी आये हैं.
doped