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ब्रह्मविलासम लेत नहीं परद्रव्यको, देत सकल परत्याग | तौ लच्छी भगवानके, रहत चरन ढिग लाग॥९॥ शीलवत पालै नहीं, भाले परतिय रूप ॥ पेख हु रावन आदि वहु, परत नर्कके कूप ॥१०॥ मन वच काया योगसों, शीलव्रतहिं ठहराय॥ सेठ सुदर्शन देखिये, सुरगण भये सहाय ॥११॥ परिग्रह संग्रह ना भलो, परिग्रह दुखको मूल || माखी मधुको जोरती, देखहु दुखको शूल ॥ १२ ॥ जिनके परिग्रह रंच नहिं, मातजात. जिम वाल॥ तिह मुनिवरके इंद्र हू, सेवत चरन त्रिकाल ॥ १३ ॥ मन वच काया योगसों, सव त्यागी मुनिराज ॥ कछु त्यागी जिय अणुव्रती, तेहू हैं सिरताज ॥ १४ ॥ राग न कीजे जगतमें, राग किये दुख होय ॥ देखहु कोकिल पीजरे, गहि डारत है लोय ॥ १५ ॥ देख संडासी पकरिये, अहिरण ऊपर डार ॥ आगहि घनसों पीटिये, लोहै संग निवार ॥ १६ ॥ नेहन कीजै आनसों, नेह किये दुख होय ॥ नेह सहित तिल पेलिये, डार जंत्रमें जोय ॥ १७ ॥ परसंगति कीजे नहीं, परहि मिले दुख पेख ॥ पानी जैसें पीटिये, वस्त्र मिले दुख देख ॥१८॥ पवन जु पोषै मसकको, मसक थूल है जाय ॥ . देखहु संगति दुष्टकी, पौनहि देह जराय ॥ १९ ॥ चेतन चंदन वृक्षसों, कर्म साँप लपटाहिं॥
बोलत गुरुवच मोरके, सिथल होय दुर जाहिं ॥२०॥ : (१) लुहारकी धोंकनी. PappyARPARMSROPARDARPARDARPAN
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