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________________ RSORRRRRRRRRRRC/OBORDEmperammarANE છે ર૮ ब्रह्मविलासम an Gooooooooooooooooaala000mccvdoco/O0s0OGG0080908 गज सुकुमार गिरयो नहीं जी,फरसतपत भई जोर।। केवल ज्ञान उपायकैजी, पहुँच्यो शिवगति ओर, मोरा०॥१०॥ खंदक ऋषिकी खाल उतारी; सहयो परीसह जोर ॥ पूर्व बंध छूटै नहीजी, घट गये कर्म कठोर, मोरा० ॥१०२॥ देखहु मुनि दमदंतको जी, कौरों करी उपाधि ॥ ईटनमें गर्भितभयोजी, तऊन तजीय समाधि, मोराः ॥१०३॥ सेठ सुदर्शनको दियोजी, राजा दंड प्रहार ॥ सह्यो परीसह भावस्योंजी, प्रगव्यो पुण्य अपार, मोरा०॥१०॥ प्रसन्न चन्द्र शिरफरसियोजी, फिर जगये सव भाव॥ नरकहितज शिवगति लहीजी, देखहु फरस उपाव, मोरा०१०५ जेते जिय मुकते गयेजी, फरसहिक उपगार ॥ पंच महाव्रत विनधरेजी, कोऊ न उतरयो पार, मोरा०॥१०६॥ __नांव कहांलों लीजियजी, वीत्यो काल अनंत ॥ "भैया' मुझ उपकारकोजी, जानै श्रीभगवंत,मोरा०॥१०७॥ सोरठा. मन बोल्यो तिहँ और, अरे फरस संसारमें ॥ __तू मूरख शिरमौर, कहा गर्व झूठो करै ॥ १०८॥ इक अंगुल परमान, रोग छानवें भर रहे ॥ .' कहा करै अभिमान, देख अवस्था नरककी ॥ १०९ ॥ पांचों अव्रत सार, तिनसेती नित पोषिये ॥ . उपजै कई विकार, एते अभिमान यह ॥ ११०॥ छिन इकमें खिर जाय, देखतदृष्ट शरीर यह ॥ . एतेपैं गर्वाय, तोसम मुरख कौन है ॥ १११॥ . SanswerPROM/REPORDPawaneswers assanneivedesranddesiseJSTANDAprampantaraivanawraavprabasenasantaraasansar
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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