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ब्रह्मविलास में
मथुरा नगरीमें हुवोजी, जंबूनाम कुमार ॥ कहिकै कथा सुहावनीजी, प्रति बोध्यो परिवार, यतीश्वर० ॥७९॥ रावनसों विरचे भलेजी, वाल महामुनि वाल || अष्टापद मुक्त गयाजी, देखहु ग्रंथ निहाल, यतीश्वर०॥ ८० ॥ मिटै उरझ उरकी सबैजी, पूछत प्रश्न प्रतक्ष ॥ प्रगट लहै परमात्माजी, विनसे भ्रमको पक्ष, यतीश्वर ० ॥ ८१ ॥
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तीन लोकमें जीभही जी, दूर करै अपराध ॥ प्रतिक्रमणकिरिया करैजी, पढै सिझाये साध, यतीश्वर ॥ ८२ ॥ जीभहि तैं सब गाइयेजी, सातों सुरके भेद ॥ जीभहितै जस जंपियेजी, जीभहि पढिये वेद, यतीश्वर, ॥८३॥ नाम जीभतैं लीजियेजी, उत्तर जीभहि होय ॥ जीभहि जीव खिमाइयेजी, जीभ समौ नहि कोय, यतीश्वर ॥८४॥ केते जिय मुक्ति गयेजी, जीभहिके परसाद ॥ नाम कहांला लीजियेजी, भैया बात अनादि, जतीश्वर ॥ ८५ ॥ दोहा .
गर्व करंत ॥ नाहि लजंत ॥ ८६ ॥ महा कलेश ॥
फर्स कहैरे जीभ तू, एतो तो लागै झुंठगे कहें, तो हू कहै वचन कर्कस बुरे, उपजै तेरे ही परसादतें, भिड़ भिड़ मरै तेरे ही रस काजको, करत अरंभ अनेक ॥ तोहि तृपति क्यों ही नही, तोतैं सबै उदेक ॥ ८८ ॥ तोमै तो अवगुण घने, कहत न आवै पार ॥
नरेश ॥ ८७ ॥
तो प्रसादतें सीसको, जातं न लागे वार ॥ ८९ ॥ झूठे ग्रंथ न तू पढ़े, दै झूठो उपदेश ॥
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