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उपादाननिमित्तका संवाद.
कहै निमित्त वे जीव को ? मो विन जगके माहिं ॥ सबै हमारे वश परे, हम विन मुक्ति न जाहिं ॥ २८ ॥ उपादान कहै रे निमित्त, ऐसे बोल न बोल ॥ तोको तज निज भजत हैं, तेही करें किलोल ॥ २९ ॥ कहै निमित्त हमको तजे, तें कैसे शिव जात ॥ पंचमहाव्रत प्रगट हैं, और हु क्रिया विख्यात ॥ ३० ॥ पंचमहाव्रत जोग त्रय, और सकल व्यवहार ॥ परको निमित्त खपायके, तव पहुंचें भवपार ॥ ३१ ॥ कहै निमित्त जग मैं बडो, मोतैं बडो न कोय ॥ तीन लोकके नाथ सब, मो प्रसादतें होय ॥ ३२ ॥
चहुं गतिमें ले जाय ॥
उपादान कहै तू कहा, तो प्रसादतें जीव सब
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दुखी होहिं रे भाय ॥ ३३ ॥
कहै निमित्त जो दुख सहै, सो तुम हमहि लगाय ॥ सुखी कौन तैं होत है, ताको देहु बताय ॥ ३४ ॥ जा सुखको तू सुख कहै, सो सुख तो सुख नाहिं ॥ ये सुख, दुखके मूल हैं, सुख अविनाशी माहिं ॥ ३५ ॥ अविनाशी घट घट वसै, सुख क्यों विलसत नाहिं ॥ शुभनिमित्तके योगविन, परे परे विल्लाहिं ॥ ३६ ॥ शुभनिमित्त इह जीवको, मिल्यो कई भवसार ॥ पै इक. सम्यक दर्श विन, भटकत फिरयो गँवार ॥ ३७ ॥ सम्यक दर्श भये कहा, त्वरित मुकतिमें जाहिं ॥ आगे ध्यान निमित्त हैं, ते शिवको पहुँचाहिँ ॥ ३८ ॥ छोर ध्यानकी धारना, मोर योगकी रीति ॥
तोर कर्मके जालको, जोर लई शिवप्रीति ॥ ३९ ॥
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