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RECRPROOPERATOmanandnavenpenSAPUR १८
ब्रह्मविलासम. रह्यो है विपै लुभाय धीमति छाइवी ॥ आगे ह अनादिकाल, हवीते विपरीत हाल, अजहूं सम्हारि लाल! वेर भली पाइवी । पी-, है छ पछतायें कछु आइ हैन हाथ तेरे, तातें अवचेत लेहु भली परजायवी ॥४३॥
जीवै जग जिते जन तिन्हें सदा रैनदिन,सोचतही छिन छिन काल छीजियतु है। धन होय धान होय, पुत्र परिवार होय, बडो विसतार होय जस लीजियतु है ॥ देहहू निरोग होय सुखको संयो। गहोइ मनवांछे भोग होय जोलौ जी जियितु है। चहै वांछा पूरी होइ पैन बांछे पूरी होय, आयु थिति पूरी होय तोलों कीजियतु है।४ा
मात्रिक कवित्त. जबलों रागद्वेष नहिं जीतय तवलों मुकति न पा कोइ । जबलों क्रोध मान मनधारत, तवला, सुगति कहांत जबलों माया लोभ वसे उर, तवलों,सुख सुपने नाहि एअरिजीत भयोजो निर्मल, शिवसंपति विलसत है सोइ ॥४५
कवित्त. सात धातु मिलन है महादुर्गन्ध भरी, तासातुम प्रीति करीलहै हत अनंद हौ । नरक निगोदके सहाई जे करन पंच, तिनहीकी सीख संचि चलत सुछंद हो ॥ आठों जाम गहे काम रागरसरंग
राचि, करत किलोल मानों माते ज्यों गयंद हो । कडू तो विचार एकरो कहां कहां भूले फिरो, भलेजू भलेजू 'भैया' भले चिदाहनंद हो ॥ ४६॥
सवैया. ए मन मूढ! कहा तुम भूले हो, हंसविसार लगे परछाया ।
यामें स्वरूप नहीं कछु तेरोजु, व्याधिकी पोट बनाई है काया। Sentyago cost accueism
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