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ब्रह्मविलासम... : :
कवित्त. __पापके कियेसों हंस मलिन निकृष्ट होय, यह तो न बूझे। है कोई पाप ही करत हैं। जल थल जीवमयी कहै वेद स्मृति माहिं पाँय तल जीव वसै छूयेते मरत हैं ॥ छोटे बडे देहधारी सबमें विराजै विष्णु, ताके तौ विनासे पाप कैसे न भरत हैं। इतनों । । विचार नाहिं पाप किये मुक्ति जॉय, ताहीत अज्ञानी जीव नर्कमें परत हैं ॥ ७॥
नागरिन संग केई सागरन केलि करी, राग रंग नाटक सों तोऊ न अघाये हो । नर देह पाय तुम आयु पल्य तीन पाहै ई, तहांहू विष किलोल नानाभाँति गाये हो ॥ जहां गये तहां तुम विषैसों विनोद कीन्हों, ताहीत नरकमें अनेक दुख पायें हो । अजई सम्हारि विष डार क्यों न चिदानंद, जाके संग दुःख होय ताहीसों लुभाये हो ॥ ८॥
जहां तोहि चलवों है साथ तू तहां को ढूंढि, इहां कहां लोहै गनसों रह्यो तू लुभाय रे । संग तेरें कौन चले देख तू विचार
हिये, पुत्र के कलत्र धन धान्य यह काय रे ॥ जाके काज पाप कर : भरत है पिंड निज, है है को संहाय तेरे नर्क जब जाय रे। तहां
तो अकेलो तूही पाप पुण्य साथी दोय, तामें भलो होय सोई है कीजे हंसराय रे ॥९॥ .. . जौलों तेरे ज्ञान नैन खुले नाहिं चिदानंद, तौलों तुम मोह
वश सूरदोस है रहे । हरके पराये प्रान पोपत हो देह निज, कहो यह कौन धर्म कौन पंथ ले रहे ॥ पापके कियेसों कछु पुण्य .
(१) देवांगनावोंके २ अंधे. REPORampowerPADMPANDROARDHA
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