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सुपंथकुपंथपचीसिका.
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झूठो पंथ सोई जहां झूठे देव देव कहै, झूठे पंथ सोई जहां झूठे गुरु मानिये । झूठो पंथ. सोई जहां ग्रंथ. सब झूठे बचें, झूठो पंथ सोई जहां भ्रमको वखानिये ॥ झूठो पंथ सोई जहां दयाको न जाने भेद, झूठो पंथ सोई जहां हिंसाको प्रमानिये । झूठे पंथ, चले तव कैसे मोक्ष पावें अरु, विना मोक्षपाये 'भैया' सुखी कैसे जानिये ॥ २२ ॥
सुपन्थवर्णन सवैया.
पंथ वह सरवज्ञ जहाँ प्रभु, जीव अजीवके भेद वतैये । पंथ वहैं जु निग्रन्थ महामुनि, देखत रूप महासुख पैये ॥ पंथ वह जह ग्रंथ विरोध न, आदि ओ अंतलों एक लखैये । पंथ वह जहाँ जीवदयावृप, कर्म खपाइकै सिद्धमें जैये ॥ २३ ॥ पंथ वह जहँ साधु चलै, सब चेतनकी चरचा चित लैये । पंथ वह जह आप विराजत, लोक अलोकके ईश जुगैये ॥ पंथ वह परमान चिदानंद, जाके चलै भव भूल न ऐये ।. पंथ वह जह मोक्षको माग, सूधे चले शिवलोकमे जैये ॥२४॥
कवित्त.
केवलीके ज्ञानमें प्रमाण आन सब भासै, लोक ओ अलोकन 'की जेती कछु बात है । अतीत काल भई है अनागतमें होयगी; वर्तमान समैकी विदित यों विख्यात है | चेतन अचेतनके भाव
विद्यमान सबै, एक ही समैमें जो अनंत होत जात है । ऐसी कछु ज्ञानकी विशुद्धता विशेष बनी, ताको धनी यहै हंस कैसे. बिललात है ॥ २५ ॥
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Ingatan teda de de de de de de de de de de
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छयानवें हजार नार छिनकमें दीनी छार, अरे मन ता निहार
God God
ॐ