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सुपंथकुपंथपचीसिका.
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न जान्यो यह सांचो धर्म, किरियाको धर्म माने मदिराकी मांच हैं । सत्यारथ वानी सरवज्ञने पिछानी 'भैया,' ताहि न पिछानी तोला नाचे कर्म नाच है ॥ १४ ॥
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कोऊ कहै सूर सोम देव हैं प्रत्यक्ष दोऊ, कोउ कहै रामचन्द्र राखे आवागोनसों कोउ कहे ब्रह्मा बडो सृष्टिको करैया अहै, कोउ कहै महादेव उपज्यो न जौनसों ॥ कोउ कहै कृष्ण सब जीव प्रतिपाल करें, कोउ लगि रहे हैं भवानी जू के भौनसों । वही उपाख्यान सांचो देखिये जहांन बीचि, वेश्याघर पूत भयो वाप कहै कौनसों ॥ १५ ॥
सवैया इकतुकिया.
निश द्यौस यह मन लाग्यो रहै, सु मुनिन्द्रके पांय कर्नै परसों । जिन देवके देखनकी रटनाजु, कहीं किम जाहुं विना परसों ॥ कवध शिवलोकमें जाय वसों, सुख संधि लहों सजिकें परसों । कव जोग मिलै इम इच्छित है भवि, आज के काल्हि किधों परसों १६ कवित्त.
जाके कुल धर्म मांहिं सरवज्ञ देव नाहिं, पूछत ते कौन पाहि हिर दैकी बातको । सं उर पूरि रहे ज्ञान गुण दूर रहे, महातम भूरि रहे लखे सार गातको ॥ मिथ्याकी लहरि आवै सांच कौन पंथ पावै, जहां तहां भूलि धावै करे जीव घातको । झूठो ही पुरान मानै झूठे देव देव ठानै, जैसें जन्म अन्ध नर देखे ना प्रभातको ॥ १७॥
राजाके परजा सब बेटा बेटीकी समान, यह तो प्रत्यक्ष बात लोकमें कहान है । आप जगदीस अवतार धरयो धरनी पैं, कुंज निमें के करी जाको नाम कान्ह है ॥ परमेश्वर करै पर वधू सों
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