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ब्रह्मविलासमें जैसो ज्ञान प्रगट है जहाँ । तैसी कछु जानै जिय तहाँ ॥ दूजो दर्शआवरण . और । गये जीव देखहिं सब और ॥६॥2 ताकी नौ प्रकृती सब कही। तामें शक्ति सवहि दवि रही ॥ ( जैसो घटै आवरन जोय । तैसो तहँ देखै जिय सोय॥७॥ है निरावाध गुण तीजो अहै । ताहि वेदनी ढांके रहै ।। साता और असाता नाम । तामहि गर्मित चेतन राम 108 जैसी द्वै प्रकृती घट जाय । तैसी तहँ निर्मलता थाय ॥ जबहि वेदनी सब खिर जाय । तब पंचमि गति पहुंचे आय॥९ चौथो महा मोह परधान । सब कर्मनमें जो वलवान | समकित अरु चारित गुणसार । ताहि ढकै नाना परकार॥१०॥ । जहँ जिम घटहि मोहकी चाल । तहँ तिम प्रगट होय गुणमाल |
ज्यों ज्यों घटै मोह जियपास । त्यों त्यों होय सत्य गुणवास ११ ताकी वीस आठ विधि कही । यथा योग्य थानक सरदही । जगमें जंतु बसै चिरकाल । सोसब मोह अछादित बाल १२ मोह गये सब जानै मर्म । मोह गये प्रगटै निजधर्म
मोह गये केवलिपद होय । मोह गये चिर रहै न कोय॥१३॥ ई पंचम आयुकर्म जिन कहै । अवगाहन गुण रोके रहै ॥1
जब वे प्रकृति आवरण जाहिं । तब अवगाहन थिर ठहराहिं १ ताकी चार प्रकृति जगनाम । जाके गये लहै शिवधाम ॥ नाम कर्म षष्ठम विरतंत । करहि जीवको मूरतिवंत॥१५॥ अमूरतीक गुण जीव अनूप । तापै लगी प्रकृति जड़रूप ॥ पुद्गल लगै कहावे जीव.। एकेंद्रयादिक पंचसदीव ॥१६॥ उदय योग नाना · परकार । चेतन वसै शरीरमझार ॥ है जैसें तनमें करहि निवास । तैसो नाम लहै जिय तास॥१७॥ en een beroerende
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