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- ब्रह्मविलासमें है लख चौरासी .. मंदिर दीस । सहस सत्याणव अरु तेईस ॥ तीन लोक जिन भवन निहार । तिनकी ठीक कहूं उरधार॥२५॥ आठ कोड अरु छप्पन लाख । सहस सत्याणव ऊपर भाख ॥ चहुसे इक्यासी जिन भौन । ताहि नमूं करि चिन्तौन॥२६॥ धनुष पंचसो विवप्रमान । इकसौ आठ चैत्य प्रति जान॥ नव अरब्ब अरु कोटि पचीस । त्रेपन लाख अधिक पुनिदीस २७
सहस सताईस नवसे. मान । अरु अडतालीस विंव प्रमान | १. एती जिन प्रतिमा गन लीजे । तिनको नमस्कार नित कीजे २८ जिनप्रतिमा जिनवरके भेश । रंचक फेर न कह्यो जिनेश ॥
जो जिनप्रतिमा सो जिनदेव । यहै विचार करै भवि सेव ॥२९ है। है अनंत चतुष्टय आदि अपार । गुण प्रगटै इहि रूप मझार ॥ ताते भविजन शीस नवाय । वंदन करहियोग त्रयलाय॥३०॥ है
अकृत्रिम अरु कृत्रिम दोय । जिन.प्रतिमा चंदो नित सोय।। १.वारंवार शीस निज नाय । वंदन करहुं जिनेश्वर पाय ३१ ॥
सत्रहरी पैंतालिस सार । भादों सुदि चउदश गुरुवार ॥ रचना कही जिनागम पाय । जैजैजै त्रिभुवनपतिराय ॥३२॥
दोहा. दक्षलीन गुनको निरख; मुरख मीठे वैन । 'भैया' जिनवानी सुने, होत सबनको चैन ॥ ३३॥
. इति श्रीअकृत्रिम चैत्यालयोंकी जयमाला. अथ चवद्हगुणस्थानवर्तिजीवसंख्यावर्णन लिख्यते. . . . . . दोहा. ..
वीतरागके चरनयुग, वंदों दोउ करजोर ॥ . . : कहूं.जीव गुणथानके, अष्टकर्म दलभोर ॥१॥ WORoopesappenPORNPanoramanwar
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