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EmanupermananRansooconomwORE . सुवुद्धिचौवीसी.
१५७३ द्रव्यगुण वचननि कह्यो न जाय। वचन अगोचर वस्तु स्वभाय॥ जो कहुं एक अस्तिता सही। तौ दूजी नय लागै नहीं ॥८॥ जोकहुं नास्तिक गुणदोउ माहि। तौ अस्तिकता कैसे नाहिं ॥ अस्ति नास्ति दोउ एकहि वेर । कही न जाय वचनको फे॥९॥ दुहको एक विचार न होय । इक आगे इक पीछे जोय ॥ कोउ गुण आगे पीछे नाहिं । दोउ गुण एक समयके माहि१० ताते वचन अगोचर दर्व । सातों नय भाखी ए सर्व ॥ नय समुझेते वस्तु प्रमान । नय समझे जिय सम्यकवान ११ । नय नहिं लखै मिथ्याती जीव । तातें भ्रामक रहै सदीव ॥ 'भैया' जे नय जानहिं भेद । तिनके मिटहि सकल भ्रमखेद
इति सप्तमंगीवाणी.
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अथ सुबुद्धिचौवीसी लिख्यते।
दोहा. चरनकमल जिनदेवके, बंदों शीस नवाय ॥ . . कहूं सुबुद्धिचौवीसिके, कछु कवित्त गुण गाय ॥ १॥
कवित्त. निर्वाण सागर . महासाधुसु विमलप्रभ, शुद्धप्रभ श्रीधर जिनेश्वर नमीजिये। सुदत्त अमलप्रभ उद्धर अङ्गिर सिन्धुह एसन्मति पुष्पांजलिके चर्णचित दीजिये। शिवगण उत्साह ज्ञानेश्वर है परमेश्वर, विमलेश्वर यथार्थ नाम नित लीजिये। यशोधर कृष्ण, ज्ञान शुद्धमति सिरीभद्र, अतिक्रान्त शान्तपद नमस्कार कीजिये २
महापद्म सुरदेव सुप्रभ जु स्वयंप्रभ, : सर्वायुध. जयदेव है ए निमल है प्रभा जिनकी. MowenwaromeopanpanwarRRORNOORPORwcom
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