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OpeopanaswanawanvidsranspanasanapanapranavanarranoonamoravendernamaANS
Rupamaanwrwanamwansangeendanaanaarana मधुविन्दुककी चौपई.
१३५ अथ मधुविन्दुककी चौपाई लिख्यते ।
दोहा. वंदों जिनवर जगत गुरु, वंदों सिद्ध महंत ।। वंदों साधू पुरुष सब, वंदा शुद्ध सिद्धत ॥१॥ मधु विंदुककी चौपई, कहूं ग्रन्थ अनुसार ॥ दुख अरु सुखके उदधिको, लहिये पारावारं ॥२॥ काल अनादि गयो इहां, वसत यही जगमाहि ॥ दुख अरु सुखसों भिन्नता, जानी कवहूं नाहिं ॥३॥ विषयसुखनको सुख लख्यो, तिहँ दुख लह्यो अपार ॥ 'सो जाने जिन केवली, है अनंत विस्तार ॥ ४॥
. चोपाई. इक दिन भविजन मिले सुभाय। आवत देख्यो श्रीमुनिराय ॥ अट्ठाईश मूल गुण धेरै । तास चरण भवि वंदन करै ॥५॥ विनती करहि हुंकर जोर । हे प्रभु भवबंधनते छोर ॥ तव मुनिराज धरमहित जान। जिन आगमकछु कहहिं बखान
दोहा. . भविक सुनहु उपदेश तुम, मन वच दृढकर काय ।। . ज्यों पावह निज सम्पदा, संशय वेग विलाय ।। ७॥ इक दृष्टांत विचारिक, कहैं सुगुरु उपदेश । सुनहु भविक थिरतासहित, तज अज्ञान कलेश ॥८॥
चौपाई.. एक पुरुष वन भूल्यो परयो । ढूंढत ढूंढत सव निशि फिरयो ।
चहुं दिश अटवी झंझाकार । हीड़त कहुं नहिं पावै पार ॥९॥ SalmanorpawanROMORRORPORApwanpower
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