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PREnwanapanemwanRSODHARAMPARDARPARODACOM मिथ्यात्वविध्वंसंनचतुर्दशी.
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ॐ उद्यम कहै अरे शंठ आलस, तूं सरवर क्यों करै हमारि ।। हम मिथ्यात तजें गहें सम्यक, जो निजरूप महा हितकारि॥ श्रावक धर्म इकादश भंदसों, श्री मुनिपंथ महाव्रत धारि ।। चंद गुण थान विलोक ज्ञेय सब, त्यांगहि कर्म वरें शिवनारि ॥६
कवित्त-मनहरन. मिथ्याभाव नाश होय तवें ज्ञान भास होय, मिथ्याके मिलापसी अशुद्धता अनादिकी । मिथ्याके सँयोग सेती मोक्षको वि-ह । योग रहे, मिथ्याके वियोग वात जानें मरजादिकी ॥ मिथ्याकी है मगनतासों संकट अनेक सह, मिथ्याके मिटाये भव भावरि लै,
वादिकी । ऐसी मिथ्या रीतिकी प्रतीतिको निवारे संत, करै निज प्रगट शक्ति तोर कर्मादिकी ॥७॥ . मोहके निवारे राग द्वेपह निवारे जाहिं, राग द्वेष टारें मोह नेक हुन पाइये । कर्मकी उपाधिके निवारिवेको पेंच यहै, जड़के । ई उखारे वृक्ष कैसे ठहराइये ।। डार पात फल फूल सवै कुम्हलाय , है जाय, कर्मनके वृक्षनको ऐसे के नसाइये । तवै होय चिदानन्द
प्रगट प्रकाश रूप, विलसै अनन्त सुख सिद्धमें कहाइये ॥ ८॥ 1 जवै चिदानंद निज रूपको संभार देखे, कौन हम कौन कर्म
कहांको मिलाप है। रागद्वेषभ्रमने अनादिके भ्रमाये हमें, तातेंहम है एभूल परे लाग्यो पुण्य पाप है ॥ रागद्वेष भ्रम ये सुभाव तो हमारे नाहि, हम तो अनंत ज्ञान, भानसो प्रताप है। जैसो शिव खेत बस तेसो ब्रह्म यहां लसै, तिहूं काल शुद्ध रूप 'भैया' निज आप है ॥२॥
‘जीव तो अकेलो है त्रिकाल तीनोंलोकमध्य, ज्ञान पुंज प्राण! SonwanRPAPERMePEOPARD/Pomerana
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