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PROPowerupamaARDPRERSONUARomaenpanpand परमार्थपदपंक्ति.
११॥ ५। राग रामकली. Pos अरे से जु यह जन्म गमायोरे, अरे से टेक।
पूरव पुण्य किये कहुं अतिही, तातै नरभव पायोरे ॥ देव धरम गुरु ग्रंथ न परखै, भटकिभटकि भरमायोरे अरे० ॥१॥ फिर तोको मिलिबो यह दुर्लभ, दश दृष्टान्त बतायोरे ॥ जो चेते तो चेतरे 'भैया' तोको कहि समुझायोरे, अरे० ॥२॥
६। पुनः राग रामकली. जीयको मोह महादुखदाई, जीयको टेक ॥ हे काल आनादि जीति जिहँ राख्यो, शक्ति अनंत छिपाई ॥ क्रम क्रम करके नरभव पायो, तऊन तजत लराई.जीयको॥१॥ मात तात सुत वन्धव वनिता, अरु परबार बडाई. तिनसों प्रीति कर निशिवासर, जानत सब ठकुराई जीयको० ॥२॥ में चहुं गति जनममरनके बहुदुख, अरु बहु कष्ट सहाई॥ ए संकट सहत तऊनहि चेतत,भ्रममदिरा अति पाई, जीयको॥३॥ इह विन तजे परम पद नाहीं, यो जिनदेव वताई॥ . तात मोह त्याग ले भइया, ज्यों प्रगटे ठकुराई,जीयको० ॥४॥
। राग काफी. जाको मन लागो निजरूपहि, ताहि और क्यों भावे ।
ज्यों अटूट धन लहै रंक कहुं, और न काहु दिखावै ॥ १॥ ६ गुण अनंत प्रगटै जिहं थानक, तापटतर को आवै ॥ । इहिविधि हंस सकल सुखसागर, आपुहि आप लखावै ॥२॥ 4 (१)मनुष्यभवक्री दुर्लभतादिखानेकेलिये जिनमतमें दश दृष्टान्तरूपकथायें हैं उन
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