________________
TROPROpenp/oppoPAPADDERRORWARD/ODH १०२
ब्रह्मविलासमें
creadawrand
awa
Ooopropran00000000000oroscoproacomprovemODoornawwapwapna
तीन लोकमें कीरति जिनकी, चन्द्रवाह जिन तिनको नांव ॥ देवानंद भूमिपतिके सुत, निशिवासर बंदहिं सुर पांव । भरत क्षेत्रत करहि बंदना, ते भविजन पावहिं शिवठांव ॥ १३॥
श्रीभुजंगमजिनस्तुति सवैया. महिमा मात महाबलराजा, लच्छन चंद धुजा पर नीको।। विजय नन भुजंगम जिनवर, नाव भलो जगमें जिनहीको । गणधर कहै सुनो भविलोको, जाप जपो सवही जिनजीको। जास प्रसाद लहै शिवमारंग, वेग मिलै निजस्वाद अमीको॥१४॥
श्रीईश्वरनिनस्तुति मात्रिक कवित्त. १ ईश्वरदेव भली यह महिमा, करहि मूल मिथ्यातमनाश । । जस ज्वाला जननी जगकहिये, मंगलसैन पिता पुनि पास ॥ नगरी जास सुसीमा भनिये, दिनपति चर्ण रहे नित तास । तिनको भावसहित नित बंदै, एक चित्त निहचै तुम दास ॥१५॥
श्रीनेमप्रभुजिनस्तुति कवित्त. __ लच्छन वृषभ पाय पिताजास वीरराय,सेनापुनि जिनमाय सुंदर सुहावनी । नगरी अजोध्या भली नवनिधि आवै चली, इन्द्रपुरी, पाँय तलीलोकमें कहावनी ॥ नेमि प्रभु नाथ वानी अवत समान मानी, तिहूं लोकमध्यजानी दुःखको वहावनी। भविजीवपायलागै सेवा तुम नित मागै, अवै सिद्धि देहु आगै सुखको लहावनी॥१६॥
श्रीवीरसेनजिनस्तुति सवैया. महा बलवंत बडे भगवंत, सवै जिय जंत सुतारनको। पिता भुवपाल भलो तिनभाल, लह्यो निजलाल उधारनको ॥ पुंडरी सुवासहि रावन पास, कहै तुम दास उवारनको
वीरसेन राय भली भानुमाय,तारोप्रभु आय विचारनको॥१७॥ Samompow/Popp/OPARDWWCOM/OPARDEOS
pansanawanstein trenerento