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________________ वर्त्तमानजिनविंशतिका: वृप लच्छन प्रभु चरन सरन, सवहीको राखहिं । तरहु तरहु संसार सत्य, सत यहैं जु भाखहिं ॥ श्रेयांस रायकुल उद्धरन, वर्त्तमान जगदीश जिन ॥ समभावसहित भविजननमहिं, चरण चारु संदेह विन ॥ १ ॥ श्रीयुगमंधर जिनस्तुति - कवित्त, ९९ केवल कलप वृच्छ पूरत हैं मन इच्छ, प्रतच्छ जिनंद जुगमंधर जुहारिये । दुंदुभि सुद्वार वाजैं, सुनत मिथ्यात्व भाजै, विराजै जगमें जिनकीरति निहारिये ॥ तिहुं लोक ध्यान धेरै नामलिये पापहरे, करें सुर किन्नर तिहारी मनुहारिये । भूपति सुदृढराय विजया सु तेरी माय, पाय गज लच्छन जिनेशके निहारिये ॥ २ ॥ श्री बाहुजिनस्तुति सवैया - दुमिला. प्रभु बाहु सुग्रीव नरेश पिता, विजया जननी जगमें जिनकी मृगचिह्न विराजत जाधुजा, नगरी है खुसीमा भली जिनकी ॥ शुभकेवल ज्ञान प्रकाश जिनेश्वर, जानतु है सबही जिनकी । गनधार कहें भवि जीव सुनो, तिहुं लोकमें कीरति है जिनकी ॥ ३ ॥ श्री सुबाहु जिनस्तुति सवैया. श्रीस्वामि सुबाहु भवोदधिं तारन, पार उतारन निस्तारं । नगर अजोध्या जन्म लियो, जगमें जिन कीरति विस्तारं ॥ निशढिल पिता सुनंदा जननी, मरकटलच्छन तिस तारं । सुरनरकिन्नर देव विद्याधर, करहि वंदना शशि तारं ॥ ४ ॥ श्रीसुनातिनिनस्तुति कवित्त. अलिका जु नाम पाँवै इन्द्रकी पुरी कहावे, पुंडरगिरि सरभर नावे जो विख्यात है । सहसकिरनधार तेजतें दिपै अपार, धुजापै विरा É de se de de de de de de de de de up/do ॐॐॐॐॐॐ 20 90 20 9
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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