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सन्मतिकी तुलना यहाँ सक्षेपमें की जाती है । प्रस्तुत दोनो आचार्योक पौर्वापर्यको विचार करने में और दूसरी भी बहुतसी वातोमे यह तुलना अभ्यासीको खास उपयोगी सिद्ध होगी। तुलना सक्षेपमे तीन भागोमें विभक्त की जाती है : १ अविकल अथवा तनिक परिवर्तनवाली गाथाएँ, २ पद, वाक्य एव विचारको समानता, और ३ वादिप्रतिवादिभाव ।
१ सन्मति का० ३ की 'नत्य पुढवी विसिदों' आदि गा० ५२ और 'दोहि वि नएहिं नीय' आदि गा० ४९ तनिक भी फेरफारके विना अविकलरूप में विशेषावश्यकमायके क्रमाक २१०४ और २१९५ ५२ अनुक्रमसे आयी है। भाज्यके टीकाकार ये दो गाथाएँ असलमे भाष्यकी ही है या अन्य स्थानसे उद्धृत है, इसके वारेमे कुछ भी सूचन या विचार नहीं करते । वह इन गाथाओको भाष्यको समझकर व्याख्या करते हो, ऐसा प्रतीत होता है, परन्तु वारीकोसे देखने पर ज्ञात होता है कि भाष्यकारने अपने कथनकी पुष्टिम इन गाथाओको कही लेकर उद्धृत किया है । एक वार मूलमे समर्थकके रूपमे प्रविष्ट पद्य पीछसे मूलके ही हो, ऐसा माननेका इतिहास, खास करके पचवन्ध कृतियोमें, वहुत मिलता है। ये दो गाथाएँ असलम सन्मतिकी होनी चाहिए, ऐसी सम्भावनाके लिए यहाँ दो दलीले मुख्य हैं। पहली यह कि सन्मति के अलावा दूसरे किसी भी अन्यमे ये दो गायाएँ अभीतक देखनमें नही आयी, और दूसरी यह कि सन्मतिम ये दोनो गाथाएँ बरावर मेल खाती हैं और प्रकरणप्राप्त है, जब कि विशेषावश्यक ऐसा नहीं है, क्योकि इन दोगाथाओमें जो वाते कही गयी है, वे इन गायाओके पूर्वका गायाओ अर्थात् अनुक्रमसे २१०३ और २१९४ मे आ जाती है। प्रस्तुत दो गाथामीको सावादिक और अन्य ग्रन्यसे उद्धृत न माना जाय, तो भाष्यमें पुनरुक्ति होती है, जबकि सन्मतिम वैसा नहीं है ।
१. शास्त्रवासिमुन्वयके तीसरे स्तबक दूसरा और तीसरा श्लोक अन्य. फर्तृक है, परन्तु अपरीक्षक पाकको वे मूलके मालूम हो सकते है ।
तत्वसंग्रहम ९१२-४ तकको कारिकाएँ भामहकी है और उनके बादका कई कारिकाएं कुमारिल भट्टको है, परन्तु मूलको देखनेवाला उन्हें मूलकी , मान लेगा।
२. कारणहालत द्र०कारण विचारक प्रसंगमें भाष्य, (२०९८ से २११८) जो २१ गाथाएं है, उनमेंसे २१०३ तक तद्रव्यकारण और अन्यद्रव्यकारण विचारका उपसंहार हो जाता है और २१०५वीं गाथासे निमित्त एवं नैमित्तिक कारणका विचार शुरू होता है। उपसंहार और इस विचार के बीच जो यह २१०४वीं गाया है, उसका बराबर मेल नहीं बैठता। इसके अतिरिक्त