________________
१०८
इतनी चचसि यह स्पष्ट है कि अनुभव और सापेक्ष अबक्तव्यताका नात्पर्थि एक माननेपर यही मानना पडता है कि जब विधि और निपंध दो विरोधी पक्षोकी उपस्थिति होती है, तव उसके उत्तरमे तीसरा पक्ष या तो उभय होगा या अवक्तव्य होगा। अतएव ऐसा मानना उचित है कि उपनिषदोके समयतक ये चार पक्ष स्थिर हो चुके थे
१ सत् (विधि) २ असत् (निषेध) ३ सदसत् ( उभय ) ४ अवक्तव्य ( अनुभव )
इन्ही चार पक्षीको परम्परा बौद्ध त्रिपिटकसे भी सिद्ध होता है। भगवान् बुद्धने जिन प्रश्नोके विषयमे व्याकरण करना अनुचित समझा है, उन प्रश्नोको अव्याकृत कहा जाता है। वे अव्याकृत प्रश्न भी यही सिद्ध करते है कि भगवान् बुद्धके समयपर्यन्त दार्शनिकीमें एक ही विषयमें चार विरोवी पक्ष उपस्थित करनेकी शेली प्रचलित थी। इतना ही नही, - वल्कि उन चारो पक्षोका रूप भी ठीक सा ही है, जैसा कि उपनिषदोमें। पाया जाता है। इससे यह सहज सिद्ध है कि उक्त चारो पक्षोका रूप तबतक वैसा ही स्थिर हो चुका था, जो कि निम्नलिखित अव्याकृत प्रश्नोको देखनेसे स्पष्ट होता है
१. होति तथागतो परमरणाति ? २ न होति तथागतो परमरणाति ? ३ होति च न होति च तथागतो परमरणाति? ४ नेव होति न नहोति तथागतो परमरणाति ? इन अव्याकृत प्रश्नोंक अतिरिक्त भी अन्य प्रश्न त्रिपिटकमें ऐसे हैं, जो उक्त चार पक्षोको ही सिद्ध करते है
१ सयकत टुक्सति ? २ ५रकत दुक्सति ? ३. सयकत परकत च दुक्सति ? ४. अमयकार अपरकार दुक्सति ? सयुत्तनि० १२ १७
त्रिपिट गत सजवलदिपुत्तके मतवर्णनको देखनेसे भी यही सिद्ध होता है कि नबन, वे ही चार पक्ष स्थिर थे। मजय विक्षेपवादी था। वह निम्नलिसिन किनी विषयमे अपना निश्चित मत प्रकट करता न था।'
१. सयुत्तनिकाय XI IV. २ दीघनिकाय : सोमअफलसुत्त ।