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तृतीय काण्ड : गाथा-६९ हो, फिर भी वह मुमुक्षु अर्थात् तटस्य व्यक्तिके लिए बिना श्रमके समझमे आ सके ऐसा है। इसे समझने का अधिकार क्लेशशान्ति (मुमुक्षुता) मे रहा हुआ है। ३ 'अमृतसार' इस विशेषणसे ऐसा सूचित किया है कि जिसमे मव्यस्थमा केन्द्रस्थानमें है और इसीलिए जो मध्यस्थोंके द्वारा ही समझमे आ सकता है ऐसा यह બનવવન કરનારા દ્વારા અમરતા વેનેજી, યદિ વિહારી ૩પયો રની નાને तो, शक्ति रखता है। इन तीनो विशेषणोके कारण ही उसकी महनीयता है।
तृतीय काण्ड समाप्त
ह हुआ .वो धर्मोंस
उन्हें सम्पूर्ण व्यपदेश्य बताकर
त और सिंधी ग्रन्थमाला । पृ० ३६ से. ४२ ) मेंसे