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सन्मति-प्रकरण
एकान्त अभेदवादीका बचाव--
भण्ण सम्बन्धवसा जह संबंधित्तणं अणुमयं ते ।
णु संबंधविससं संबंधिविससणं सिद्ध ॥२०॥ अर्थ हमारा ऐसा कहना है कि यदि सम्बन्धसामान्य कारण सामान्य सम्बन्धीपना आपको मान्य हो,तो इसी न्यायसे सम्बन्धविशेषक कारण विशेष सम्बन्धीपना सिद्ध होगा। सिद्धान्तीका कथन
जुज्जई सम्बंधवसा संबंधिविसेसणं ण उण एवं ।
णयणाइविसेसगो रूवाइविसंसपरिणामो ॥२१॥ अर्थ सम्वन्धविशेषके कारण विशेषसम्बन्धीपना घट सकता है, परन्तु रूप आदि विशेष परिणाम नेत्र आदिक विशेषसम्वन्धके कारण है, इस विषयमे यह नहीं घटेगा। एकान्त अभेदवादीका प्रश्न और उसका सिद्धान्ती द्वारा दिया गया उत्तर
भणइ विसमपरिणयं कह एवं होहि ति उवणीयं ।
तं होइ परणिमित्तंग वत्ति एत्थऽस्थि एगतो ॥२२॥ अर्थ हम पूछते है कि द्रव्य विशेषपरिणामवाला कसे बनगा ! इसका उत्तर अनेकान्तवादी आप्तीने दिया है कि वह विषमपरिणामवाला पर-निमित्तोसे होता है और नही भी होता। इस बारेमे कोई एकान्त नहीं है।
विवेचन पीछेकी चसि पर्याय और गुण ये दोनो शब्द एकार्यक सिद्ध हुए, परन्तु मुख्य प्रश्न तो अभी खडा ही है और वह यह है कि द्रव्य और गुणको एकान्त भेद, जो कि किसीके मतके रूपमे उपस्थित किया गया है, स्वीकार करना या नहीं ? इसका उत्तर सिद्धान्ती दे, उसके पहले एकान्त अभेदवादी इस तरह देता है कि द्रव्यकी जाति और गुणकी जातिके वीच एकान्त भेद मानने के पक्षको तो पहले ही (प्रस्तुत काण्डकी गा० १-२ मे) अर्थात् सामान्य-विशेषका अभेद दिखलाते समय