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१३ दोनो नय अलग-अलग मिय्यादृष्टि कैसे बनते है इसका स्पष्टी
करण
१४ दोनो नयोमे ययार्थता कैसे आती है इसका स्पष्टीकरण १५ मूल नयोके साथ उत्तर नयोकी समानताका कथन १६ उत्तर नयोमे सम्पूर्ण सद्ग्राही कोई एक नय नही है ऐसा पुन कथन
१७ किसी भी एक नयके पक्षमे ससार, मुख - दुखसम्बन्ध एव मोक्ष नही घट सकते ऐसा कयन
१८ ये ही नय कभी सम्यग्दृष्टि नही होते और कभी होते हैं, इसके कारणका दृष्टान्तके द्वारा समर्थन
१९ दृष्टान्त देनेकी सार्थकता सिद्ध करनेके लिए उसके गुणोका कथन २० सापेक्षता न हो तो मिध्यादृष्टि ही है इस बातका कतिपय प्रसिद्ध वादो द्वारा स्पष्टीकरण
२१ अनेकान्तज्ञ मर्यादा और उसकी व्यवस्था कैसे करे इसका कयन ૨૨ વોનો મૂછ નયોર્જી વિષયમર્યાવા
२३ भेदका विशेष वर्णन
२४ एक ही द्रव्य अनेक कैसे बनता है इसका स्पष्टीकरण
२५ व्यजनपर्यायका उदाहरण
२६ व्यजनपर्याय में एकान्त अभिन्नता मानने पर क्या दोष आता है इसका कथन
२७ प्रस्तुत उदाहरणमें व्यजनपर्याय और अर्थपर्यायका स्पष्ट रूपसे पृथक्करण
२८ एकान्त मान्यतावालेमें अशास्त्रज्ञत्वके दोषका कयन २९ सात भगोका स्वरूप
३० अर्थपर्याय और व्यजनपर्यायमे सात भगोका विभाजन ३१ केवल पर्यायार्थिक नयकी देशना पूर्ण नही है ऐसा कथन ३२ केवल द्रव्यायिक नयकी देशनाका जो वक्तव्य है उसका युक्ति
द्वारा कयन
३३ वस्तुत पुरुष कैसे स्वरूपवाला है इसका कथन और उसके द्वारा जीवके स्वरूप का निश्चय
૨૪ નીવ ઃ પુ ષત્ મેવાસેવળો સમર્ચન
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