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‘स्यादस्ति’ ‘स्यान्नास्ति’ आदि सप्तभंगोंका और दिगम्बराचार्य (श्रीदेवसैनस्वामीविरचित नयचक्रके आधारसे नय, उपनय, तथा मूलनयोंका भी विस्तारसे वर्णन किया है । मू० २)
गोम्मटसार कर्मकाण्ड
जयपुर
श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्त्तीकृत मूल गाथायें और पं० मनोहरलालजी शास्त्रीकृत संस्कृतछाया तथा भापाटीका सहित । इसमें जैनतत्त्वोंका स्वरूप कहते हुए जीव तथा कर्मका स्वरूप इतना विस्तारसे किया गया है कि वचन द्वारा प्रशंसा नही हो सकती है । देखनेसे ही मालूम हो सकता है । जो कुछ संसारका झगड़ा है, वह इन्ही दोनो ( जीव कर्म ) के संवन्धसे है, इन दोनो का स्वरूप दिखानेके लिये यह ग्रंथ - रत्न अपूर्व सूर्यके समान है । दूसरी बार पं० खूबचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीद्वारा संशोधित हो करके छपा है । मूल्य सजिल्दका २ ) गोम्मटसार जीवकाण्ड
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श्रीनेमिचन्द्राचार्यकृत मूल गाथायें और पं० खूबचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीकृत संस्कृत छाया तथा बालबोधिनी भापाटीका सहित । इसमे गुणस्थानोंका वर्णन, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, मार्गणा, उपयोग, अन्तर्भाव, आलाप आदि अनेक अधिकार है । सूक्ष्म तत्त्वों का विवेचन करनेवाला यह अपूर्व ग्रंथ है। दूसरी बार संशोधित होकर छपा है । मूल्य सजिल्दका २ ||)
परमात्मप्रकाश
श्रीयोगीन्दुदेवकृत प्राकृत दोहा, श्रीब्रह्मदेवसूरिकृत संस्कृतटीका और स्व० पं० दौलतरामजीकी पुरानी भाषाटीका के आधार से लिखित प्रचलित सरल हिन्दी टीका । यह ग्रन्थ पुनः प्रोफेसर आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय एम० ए० द्वारा सुसंपादित और शुद्ध किया जाकर छप रहा है, जिसकी महत्त्वपूर्ण भूमिकामे इसके रचयिता श्रीयोगीन्दुदेव के विषय मे बहुत सी ऐतिहासिक और सैद्धान्तिक ज्ञातव्य बाते रहेंगी । यह समाधि-मार्गका जैनियोमे अपने ढँगका एक ही ग्रन्थ है ।
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लब्धिसार
( क्षपणासारगर्भित ) श्रीनेमिचन्द्राचार्यकृत मूल गाथाये, और स्व० पं० मनोहरलालजी शास्त्रीकृत संस्कृतछाया और हिन्दी भापाटीका सहित । यह ग्रंथ गोम्मटसारका परिशिष्ट है । इसमें मोक्षके मूल कारण सम्यक्त्वके प्राप्त होनेमे सहायक क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य, करण - इन पाँच लब्धियोंका वर्णन है । मूल्य सजिल्दका १ ॥ )
समयसार
भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यकृत मूल गाथाये, श्री अमृतचन्द्रसूरिकृत आत्मख्याति और श्रीजयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति, ऐसी दो संस्कृत टीकाये और स्व० पं० जयचन्द्रजीकी टीकाके आधारसे लिखी हुई प्रचलित भाषामे हिन्दी टीका । यह ग्रंथ सुन्दरता पूर्वक छपा है । इसमे जीवाजीव, कर्तृकर्म, पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, सर्वविशुद्धज्ञान ऐसे ९ अधिकार है । यह जैनधर्मका असली स्वरूप निश्चयनयसे दिखानेवाला अपूर्व अध्यात्म-ग्रंथ है । यह ग्रंथ बम्बई विश्वविद्यालयके एम० ए० के कोर्समें नियत है । कपड़ेकी जिल्द बँधे हुए ६०० पृष्टोके ग्रंथका मूल्य सिर्फ ४|| ) है ।