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दर्शनशास्त्रका अपूर्व ग्रंथ ...
छपकर तैयार है । स्याद्वादमञ्जरी कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यकृत अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिकाकी श्रीमल्लिषेणसूरिकृत विस्तृत संरकृत-टीका स्याद्वादमंजरीके नामसे प्रसिद्ध है । यह स्याद्वादमंजरी पं० जगदीशचन्द्रजी शास्त्री, एम. ए. कृत सरल और विस्तृत हिन्दी अनुवाद सहित अभी छप करके तैयार हुई है। मल्लिषेणसूरिने इस ग्रन्थमें न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदान्त, सांख्य, बौद्ध और चार्वाक नामके छह दर्शनोंके मुख्य मुख्य सिद्धांतोंका अत्यन्त सरल, स्पष्ट और मार्मिक भापामें प्रतिपादनपूर्वक खण्डन करके सम्पूर्ण दर्शनोंका समन्वय करनेवाले स्याद्वाददर्शनका प्रौढ़ युक्तियोंद्वारा मण्डन किया है । दर्शनशास्त्रके अन्यग्रंथोंकी अपेक्षा इस ग्रंथकी यह एक असाधारण विशेषता है कि इसमें दर्शनशास्त्रके कठिनसे कठिन विषयोंका भी अत्यन्त सरल, मनोरंजक
और प्रसाद गुणसे युक्त भाषामें प्रतिपादन किया है । इस ग्रंथके संपादन और अनुवादकी जितनी प्रशंसा की जाय उतनी थोड़ी है । अनुवादक महोदयने स्याद्वादमंजरीमें आये हुए विषयोंका वर्गीकरण करनेके साथ कठिन विषयोंको, वादीप्रतिवादीके रूपमें शंका-समाधान उपस्थित करके, प्रत्येक श्लोकके अन्तमें उसका भावार्थ देकर समझाया है और इस तरह ग्रंथको संस्कृत और हिन्दीकी अनेक टीका-टिप्पणियोंसे समलंकृत बनाया है । सम्पादक महोदयने जैन, बौद्ध, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, मीमांसा, वेदान्त, चार्वाक और विविध परिशिष्ट नामके आठ परिशिष्टोद्वारा इस ग्रंथको और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया है। इन परिशिष्टोंमें छह दर्शनोंके मूल सिद्धांतोंका नये दृष्टिकोणसे विवेचन किया गया है, और साथ ही इनमें दर्शनशास्त्रके विद्यार्थियोंके लिये पर्याप्त सामग्री उपस्थित की गई है। इस ग्रंथके आरंभमें ग्रंथ और ग्रंथकारका परिचय देते हुए, 'स्याद्वादका जैनदर्शनमें स्थान' यह शीर्षक देकर, स्याद्वादका तुलनात्मक दृष्टि से विवेचन किया गया है । स्याद्वादमंजरीके अतिरिक्त इस संस्करणमें हेमचन्द्राचार्यकी अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका भी हिन्दी अनुवाद सहित दी गई है। इस ग्रंथके प्राक्कथन-लेखक हिन्दू-विश्वविद्यालयके दर्शनाध्यापक श्रीमान् पं० भिक्खनलालजी आत्रेय, एम. ए., डी. लिट हैं । स्याद्वादमंजरीमें जो विषय आये हैं, उनकी संक्षिप्त सची निम्न प्रकारसे है--प्राक्कथन, सम्पादकीय निवेदन, ग्रंथ और ग्रंथकार, जैनदर्शनमें स्याद्वादका स्थान, न्यायवैशेषिकोंके सामान्य-विशेषवाद, नित्यानित्यवाद, ईश्वरका जगत्कर्तृत्व, समवाय और सत्ता, आत्मा और मोक्ष, छल, जाति और आदि सिद्धान्तोंका खंडन, वेदविहित हिंसाको धर्म माननेवाले और परोक्ष ज्ञानवादी मीमांसकोंकी समीक्षा, ब्रह्माद्वैतवादी और सांख्य मतके सिद्धांतोंपर विचार, बौद्धोंका क्षणिकवाद, शून्यवाद, ज्ञानाद्वैतवाद आदि मान्यताओंका विस्तृत खंडन, चार्वाकोंके भौतिकवादका खंडन, आत्मसिद्धि, सर्वज्ञसिद्धि, जीवोंके सदा मोक्ष जाते रहते हुए भी यह संसार जीवोंसे खाली नहीं होता, स्याद्वादका विवेचन, स्याद्वादमें विरोध आदि दोषोंका परिहार, सर्वसमन्वयदृष्टि और स्याद्वाददर्शन, अयोगव्यवच्छेदिका, जैन, बौद्ध, न्यायवैशेषिक, सांख्ययोग, पूर्वमीमांसा, वेदान्त, चार्वाक और विविध नामके आठ परिशिष्ट, तथा तेरह अनुक्रमणिकायें हैं ।