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अध्यात्मका अपूर्व ग्रंथ
हाल ही छपा है
प्रवचनसार
[ श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यकृत प्राकृत मूल, अमृतचन्द्राचार्य और जयसेनाचार्यकृत संस्कृतटीकाद्वय, पांडे हेमराजजीकृत हिन्दी टीका, प्रोफेसर उपाध्यायकृत अंग्रेजी अनुवाद, १२.५ पृष्ठोंकी - अति विस्तृत अंग्रेजी भूमिका, विभिन्न पाठ-भेदोंकी
और ग्रन्थकी अनुक्रमणिका आदि अलंकारों सहित संपादित ]
सम्पादक पं० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय एम० ए०
.. प्रोफेसर राजाराम कॉलेज, कोल्हापुर यह अध्यात्मशास्त्रके प्रधान आचार्यप्रवर श्रीकुन्दकुन्दका ग्रन्थ है, केवल इतना ही आत्मज्ञानके इच्छुक मुमुक्षु पाठकोंको आकर्षित करने के लिए काफी है । यह जैनागमका सार है। इसमें ज्ञानाधिकार, ज्ञेयतत्त्वाधिकार, और चारित्राधिकार ऐसे तीन बड़े बड़े अधिकार हैं । इसमें ज्ञानको प्रधान करके शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका कथन है, अर्थात् और सब विषयोंको गौण करके प्रधानतः आत्माका ही विशेष वर्णन है । इस ग्रन्थका एक संस्करण पहले निकल चुका है। इस नये संस्करणको प्रोफेसर उपाध्यायजीने बहुतसी पुरानी सामग्रीके आधारसे संशोधित किया है, और उसमें श्रीकुन्दकुन्दाचार्यका जीवनचरित, समय, उनकी अन्य रचनाओं, टीकाओं, भापा, दार्शनिकता आदिपर गहरा विवेचन किया है । इसकी अंग्रेजी भूमिका भाषाशास्त्र और दर्शनशास्त्रके विद्यार्थियोंके लिए ज्ञानकी खान है, और धैर्ययुक्त परिश्रम और गहरी खोजका एक नमूना है । इस भूमिकापर वम्बई विश्वविद्यालयने २५०) पुरस्कार दिया है, और इस अपने एम्० ए० के पाठ्यक्रममें रखा है । इस ग्रन्थकी छपाई स्वदेशी कागजपर निर्णयसागर प्रेसमें बहुत ही सुन्दर हुई है । पृष्ठसंख्या ६०० से लगभग है, ऊपर कपड़ेकी मजबूत और सुन्दर जिल्द बँधी है । मूल्य सिर्फ ५) है।