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- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला- [अ० २, गा० ७५णिद्धेण बझंति लुक्खा लुक्खा य पोग्गला । गिद्ध लुक्खा य वझंति रूवारूवी ये । पोग्गला ॥” “णिद्धस्स णिद्वेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण। णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि वंधो जहण्णवजे विसमे समे वा ॥" ॥ ७४ ॥ .. अथात्मनः पुद्गलपिण्डात्मकर्तृत्वाभावमवधारयति
दुपदेसादी खंधा सुहमा वा बादरा ससंठाणा ।
पुढविजलतेउवाऊ सगपरिणामेहिं जायते ॥ ७५ ॥ परमानन्दैकलक्षणस्वसंवेदज्ञानबलेन हीयमानरागद्वेषत्वे सति पूर्वोक्तजलवालुकादृष्टान्तेन यथा जीवानां बन्धो न भवति तथा जघन्यस्निग्धरूक्षत्वगुणे सति परमाणूनां चेति । तथा चोक्तम्"णिद्धस्स णिद्धेण दुराधिगेण लुक्खस्स लुक्खेण दुराधिगेण । णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जघप्रणवज्जे विसमे समे वा" ॥ ७४ ॥ एवं पूर्वोक्तप्रकारेण स्निग्धरूक्षपरिणतपरमाणुखरूपकथनेन दोनों परमाणुओंका आपसमें बंध होता है । अथवा एकमें चार अंश हों, तथा दूसरे में छह अंश हों, तो भी बंध होता है । इस प्रकार अपने अनंत अंश भेद तक दो अंश अधिक स्निग्धतासे स्निग्ध परमाणुओंका अथवा स्कंधोंका बंध जानना । तथा एक परमाणु तीन अंश रूक्ष हो, और दूसरा परमाणु पाँच अंश रूक्ष हो, तो दोनोंका बंध होता है, अथवा एक परमाणु पाँच अंश दूसरा सात अंश हो, तो भी बंध होता है। इस प्रकार अपने अंश भेद तक दो अंश अधिक रूक्षतासे रूक्ष परमाणुओंका अथवा स्कंधोंका बंध जानना चाहिये। एक परमाणुमें दो अंश रूखेपनेके हैं, और दूसरे परमाणुमें चार अंश स्निग्धताके हैं, तो भी बंध होता है, इस प्रकार दो अंश अधिक स्निग्ध रूक्ष गुणोंके अंशोंसे भी परमाणु तथा स्कंधोंका बंध जानना चाहिये । इससे यह बात सिद्ध हुई, कि स्निग्धतासे दो अंश अधिक स्निग्धताकर वंध होता है, तथा रूक्षतासे दो अंश अधिक रूक्षताकर बंध होता है, और रूक्षता स्निग्धतामें भी दो अंश अधिक होनेसे वंध होता है। जो दो परमाणुओंमें अंश बरावर हों, तो बंध नहीं होता, और जो एक अंश अधिक हो, तो भी बंध होना संभव नहीं है, परंतु जब दो अंश अधिक हों, तभी बंध हो सकता है, दूसरी तरह बंध होनेकी योग्यता नहीं है । तथा जो एक अंश चिकनाई अथवा रूखाई हो, तो भी बंध नहीं होता, क्योंकि एक अंश अति जघन्य है इस कारण बंध योग्य नहीं है। दो अंशसे लेकर आगे अनंत भेदतक दो अंश अधिक चिकनाई रूखाईके होवें, तव वंध होता है, एक अंशसे बंधका अभाव ही जानना । एक परमाणु एक अंश चिकनाई अथवा रूखाईपनेसे परिणत हो, और दूसरा तीन अंश चिकनाई अथवा तीन अंश रूखापनेसे परिणत हो, तो भी बंध नहीं होता । यद्यपि यहाँपर दो अंश अधिक भी हैं, तो भी बंधकी योग्यता नहीं है, इस कारण एक अंशसे वंध कभी नहीं होता ॥ ७४ ॥ आगे आत्माके पुद्गलपिंडके कर्तापनेका अभाव दिखलाने