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-- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला - [अ० २, गा० १५साश्रित्य वर्तिनी निर्गुणैकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका वृत्तिस्वरूपा च सत्ता भवतीति तयोस्तद्भावस्याभावः । अत एव च सत्ताद्रव्ययोः कथंचिदनान्तरत्वेऽपि सर्वथैकत्वं न शङ्कनीयं, तद्भावो ह्येकत्वस्य लक्षणम् । यत्तु न तद्भवद्विभाव्यते तत्कथमेकं स्यात् । अपि तु गुणगुणिरूपेणानेकमेवेत्यर्थः ॥ १४ ॥ अथातद्भावमुदाहृत्य प्रथयति
सद्दवं सच्च गुणो सच्चेव य पजओ त्ति वित्थारो। . जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतव्भावो ॥ १५॥
सद्रव्यं सच्च गुणः सञ्चैव च पर्याय इति विस्तारः ।
यः खलु तस्याभावः स तदभावोऽतद्भावः ॥ १५ ॥ ज्ञातव्यमित्यर्थः ॥ १४ ॥ अथातद्भावं विशेषेण विस्तार्य कथयति-सद्दवं सच्च गुणो सच्चेव य पन्जओ त्ति वित्थारो सद्रव्यं संश्च गुणः संश्चैव पर्याय इति सत्तागुणस्य द्रव्यगुणजैसे वस्त्र और शुक्ल गुणमें अन्यत्व-भेद है, उसी प्रकार सत्ता और द्रव्यमें है, क्योंकि वस्त्र में जो शुक्ल गुण है, सो एक नेत्र इंद्रियके द्वारा ग्रहण होता है, अन्य नासिकादि इंद्रियोंके द्वारा नहीं होता, इस कारण वह शुक्ल गुण वस्त्र नहीं है। और जो वस्त्र है, सो नेत्र इंद्रियके सिवाय अन्य नासिकादि इंद्रियोंसे भी जाना जाता है, इस कारण वह वस्त्र शुक्ल गुण नहीं है। शुक्ल गुणको एक नेत्र इंद्रियसे जानते हैं, और वस्त्रको नासिकादि अन्य सब इंद्रियोंसे जानते हैं। इसलिये यह सिद्ध है, कि वस्त्र और शुक्ल गुणमें अन्यत्व अवश्य ही है। जो भेद न होता, तो जैसे नेत्र इंद्रियसे शुक्ल गुणका ज्ञान हुआ था, वैसे ही स्पर्शरस गंधरूप वस्त्रका भी ज्ञान होता, परंतु ऐसा नहीं है । इस कारण इंद्रिय-भेदसे भेद अवश्य ही है। इसी प्रकार सत्ता और द्रव्यमें अन्यत्व-भेद है । सत्ता द्रव्यके आश्रय रहती है, अन्य गुण रहित एक गुणरूप है, और द्रव्यके अनंत विशेषणोंमें एक अपने भेदको दिखाती है, तथा एक पर्यायरूप है, और द्रव्य है, सो किसीके आधार नहीं रहता है, अनंत गुण सहित है, अनेक विशेषणोंसे विशेष्य है, और अनेक पर्यायोंवाला है । इसी कारण सत्ता और द्रव्यमें संज्ञा, संख्या, लक्षणादि भेदसे अवश्य अन्यत्व-भेद है।जो सत्ताका स्वरूप है, वह द्रव्यका नहीं है, और जो द्रव्यका स्वरूप है, वह सत्ताका नहीं है । इस प्रकार गुण-गुणी-भेद है, परंतु प्रदेश-भेद नहीं है ॥ १४ ॥ आगे अन्यत्वका लक्षण विशेपतासे दिखलाते हैं;-[ सत् द्रव्यं] सत्तारूप द्रव्य है, [च]
और [ सत् गुणः ] सत्तारूप' गुण है, [च ] तथा [सत् एव पर्यायः] सत्तारूप ही पर्याय है, [इति] इस प्रकार सत्ताका [विस्तारः] विस्तार है। और [खलु]