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• रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला
अथ शुद्धोपयोगपरिणतात्मखरूपं निरूपयति-सुविदिपयत्थसुत्तो संजमतवसंजुदो विगदरागो । समणो समसुहदुक्खो भणिदो सुद्धोवओगो त्तिः ॥ १४ ॥ सुविदितपदार्थसूत्रः संयमतपः संयुतो विगतरागः ।
श्रमणः समसुखदुःखो भणितः शुद्धोपयोग इति ॥ १४ ॥ सूत्रार्थज्ञानबलेन स्वपरद्रव्यविभाग परिज्ञानकारणात्, विधानसमर्थत्वात्सुविदितपदार्थसूत्रः । सकलषड्जीवनिकायनिशुम्भनविकल्पात्पञ्चेन्द्रियाभिलाषविकल्पाच्च व्यावर्त्यात्मनः शु सुखेभ्योऽप्यपूर्वाद्भुतपरमाह्लादरूपत्वादतिशयखरूपं, आदसमुत्थं रागादिविकल्परहितखशुद्धात्मसंवित्तिसमुत्पन्नत्वादात्मसमुत्थं, विसयातीदं निर्विषयपरमात्मतत्त्वप्रतिपक्षभूतपञ्चेन्द्रियविषयातीतत्त्राद्विषयातीतं, अणोवमं निरुपमपरमानन्दैकलक्षणत्वेनोपमारहितत्वादनुपमं, अनंत अनन्तागामिकाले विनाशाभावादप्रमितत्वाद्वाऽनन्तं, 'अव्युच्छिण्णं च असातोदयाभावान्निरन्तरत्वादविच्छिन्नं च सुहं एवमुक्तविशेषणविशिष्टं सुखं भवति । केषाम् । सुद्धुवओगप्पसिद्धाणं वीतरागपरमसामायिकशब्दवाच्य शुद्धोपयोगेन प्रसिद्धा उत्पन्ना येऽर्हत्सिद्धास्तेषामिति । अत्रेदमेव सुखमुपादेयत्वेन निरन्तरं भावनीयमिति भावार्थः ॥ १३ ॥ अथ येन शुद्धोपयोगेन पूर्वोक्तसुखं भवति तत्परिणतपुरुषलक्षणं प्रकाशयति - सुविदिदपयत्थसुत्तो सुष्ठु संशयादिर'हितत्वेन विदिता ज्ञाता रोचिताश्च निजशुद्धात्मादिपदार्थास्तत्प्रतिपादकसूत्राणि च येन स सुविदि
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[ अ० १, गा० १४
आनंदरूप नहीं हुआ । फिर कैसा है ? [ आत्मसमुत्थं ] अपने आत्मासे ही उत्पन्न हुआ है, पराधीन नहीं है। फिर कैसा है ? [ विषयातीतं ] पाँच इंद्रियोंके स्पर्श, रस, गंध, रूप, शब्दस्वरूप जो विषय-पदार्थ उनसे रहित है, संकल्प-विकल्परहित अतींद्रियसुख है । फिर कैसा है ? [ अनौपम्यं ] उपमासे रहित है, अर्थात् तीन लोकमें जिस सुखके बराबर दूसरा सुख नहीं है । इस सुखकी अपेक्षा दूसरे सब सुख दुःख ही स्वरूप हैं । फिर कैसा है ? [ अनन्तं ] जिसका नाश नहीं होता, सदा ही फिर कैसा है ? [ अव्युच्छिन्नं ] बाधारहित - हमेशा एकसा रहता है शुद्धोपयोगका ही फल है । इससे यह अभिप्राय निकला कि, शुद्धोष, उपादेय है, और शुभ अशुभोपयोग हेय है । इन दोनोंमें व्यवह शुभोपयोग तो उपादेय है, परन्तु अशुभोपयोग तो सर्वथा ही है। शुद्धोपयोग सहित जीवका स्वरूप कहते हैं - [ एतादृशः श्रम इति भणितः ] ऐसा परम मुनि शुद्धोपयोग भावस्वरूप परिणमता है। देवने कहा है । कैसा है, वह श्रमण अर्थात् मुनि । [सुविदितव सहि रीति से जान लिये हैं, जीवादि नव पदार्थ तथा इन पदार्थों का कह क