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________________ १३० - रायचन्द्रजैनशास्त्रमालाविषय पृ. गा. विषय पृ. गा. इन दोनों में समानता जाननेसे ही शुद्धोप- | सब विरोधोंको दूर करनेवाली सप्तभंगी योगकी प्राप्ति ... ... ... ९८१७८] - नयका कथन ... ... ... १६१।२३ मोहादिके दूर करनेसे ही आत्म-लाभ ... ९९७९ मनुष्यादि पर्याय क्रिया-फल होनेसे वस्तु-खमोहकी सेनाके जीतनेका उपाय ... १०१।८० __ भावसे भिन्नता तथा क्रिया-फलका कथन १६२।२४ प्रमादरूप चोरके कारण सावधान रहना मनुष्यादि पर्यायोंसे खभावका तिरोभाव १६६।२६ __ चाहिए ... ... ... ... १०२।८१ जीवका पर्यायसे अनवस्थितपना ... १६७।२७ अपने खरूपका अनुभव करनेसे ही मोक्षकी अनवस्थितपनेमें हेतु ... ... ... १६९।२८ प्राप्ति होती है, ऐसा कथन... ... १०३।८२ आत्माका पुद्गलके साथ संबंध होनेका कथन १७०।२९ शुद्धात्माके लाभका शत्रु मोह है ... १०५।८३ / निश्चयसे आत्मा द्रव्यकर्मका अकर्ता है... १७१।३० मोहका क्षय करना कर्तव्य है ... ... १०६१८४ आत्माका परिणमन खरूप ... ... १७३।३१ मोहके तीन भाव भी क्षय करने चाहिये... १०७८५ ज्ञानादि तीन तरहकी चेतनाका स्वरूप... १७३३२ जैनमतमें पदार्थों की व्यवस्था ... ... १०९४८७ द्रव्यके सामान्य कथनका उपसंहार ... १७६।३४ मोहके नाशके उपायमें पुरुषार्थ कार्यकारी है ११११८८ | द्रव्यका विशेष कथन ... ... ... १७८१३५ खपरभेद-विज्ञानसे मोहका क्षय ... ११११८९ | लोक अलोकका लक्षण ... ... ... १८०३६ मेदविज्ञान आगमसे होता है ... ... ११२।९० | | कौन द्रव्य क्रियावाले हैं ? ... ... १८११३७ वीतरागकथित पदार्थोंके श्रद्धान विना द्रव्यमें भेद, गुणके मेदसे है ... ... १८२।३८ ___ आत्म-धर्मका लाभ नहीं होता ... ११४।९१ मूर्त अमूर्त गुणोंका लक्षण ... ... १८३१३९ आचार्यकी धर्ममें स्थित होनेकी प्रतिज्ञा... ११५।९२ पुद्गल द्रव्यके गुण ... ... ... १८४१४० अमूर्त द्रव्योंके गुण ... ... ... ૧૮૮૪૧ २. ज्ञेयतत्त्वाधिकारः द्रव्योंके प्रदेशी अप्रदेशी भेद ... .... १९०।४३ - पदार्थोंको द्रव्य गुण पर्याय स्वरूप होना ११९।१ द्रव्योंके रहनेका स्थान ... ... ... १९११४४ खसमय परसमयका कथन ... ... १२२।२ कालाणुका अप्रदेशीपना ... ... १९४।४६ द्रव्यका लक्षण ... ... ... ... १२३३ | कालपदार्थके पर्याय ... ... ... १९५।४७ अस्तित्वके भेदोंका खरूप ... ... १२६।४ | प्रदेशका लक्षण ... ... ... ... १९८१४८ द्रव्यसे अन्य द्रव्यकी उत्पत्तिका अभाव तथा कालपदार्थका प्रदेश-मात्र होना ... २०४५२ ___ द्रव्यसे सत्ताके जुदेपनेका अभाव .... १३२।६ | व्यवहार जीवपनेका कारण ... ... २०६५३ द्रव्यके सत्पनेका कथन ... ... ... १३४१७ | प्राणोंकी संख्या... ... ... ... २०८१५४ उत्पादादिका आपसमें अविनाभाव सम्बंध १३६१८ प्राणोंके पुद्गलीकपनेकी सिद्धि ... ... २०९।५६ | नवीन कर्मके कारण प्राण हैं ... ... २१०५७ उत्पादादिकोंका द्रव्यसे अभेद ... ... १३८९ प्राणोंकी उत्पत्तिका अंतरंग कारण ... २१११५८ अनेक द्रव्योंके तथा एक द्रव्यके पर्यायोंद्वारा प्राणोंकी संतानका नाशक अंतरंग कारण २१२१५९ . उत्पादादिका कथन ... ... ... १४२।११ जीवके व्यवहार पर्यायका खरूप व भेदका सत्ता और द्रव्यके एकत्वमें युक्ति ... १४४।१३ __ कथन ... ... ... ... २१३१६० भेदोंके भेदोंका लक्षण ... ... ... १४६।१४ आत्माके स्वभावका कथन ... ... २१५।६२ . . . सत्ता और द्रव्यका परस्पर गुणगुणीपना... १५२।१७ | परद्रव्यके संयोगका कारण ... ... २१६।६३ गुण-गुणीमें एकता ... ... ... १५३।१८ शुभोपयोगका खरूप ... ... ... २१८१६५ दो तरह के उत्पादोंमें अविरोध... ... १५४।१९ अशुभोपयोगका स्वरूप... ... ... २१९१६६ सदुत्पादका पर्यायसे अभेद ... ... १५७।२० परसंयोगके कारणका विनाश ... ... २२०६७ असदुत्पादका पर्यायसे भेद ... .... १५८।२१ शरीरादि परमें माध्यस्थ भाव ... ... २२१।६८
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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