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________________ संस्कृत-साहित्य का इतिहास मत्तविलास के साथ मिलते-जुलते हैं, इस आधार पर डा बानेट ने इन्हें ७ वीं शताब्दी का बताया है। डा बिटरनिटका और स्टेन कोनो ने इन नाटकों को ईसा को कूलरी और चौथी शताब्दी के ये युनियाँ प्रबल होने पर भी पूर्ण साधक नहीं हैं । इस मत में निम्नलिखित बातों का समाधान नहीं होता :--- (अ) चारुदत्त में ऐसे प्रकरण हैं जो मृच्छकटिक में नहीं हैं। (आ) चारुदत्त में उज्जैन के राजनैतिक विप्लव का उल्लेख नहीं है। यदि चारुदत्त मृच्छकटिक से बाद में बना होता, तो इसमें इस महत्त्वपूर्ण विप्लव का उल्लेख अवश्य होता। दोनो नाटको के वैषभ्य के आधार पर भी कुछ परिणाम निकालने का प्रयत्न किया गया है । वैषम्य की कुछ मुख्य बातें ये हैं:-पारिभाषिक शब्द, प्राकृतमाषाएँ, पद्यरचना और नाटकीय घटना। पारिभाषिक शब्द- इस बारे में मुख्य दो शब्द ये हैं ----(१) चारुदत्त की दोनो हस्तलिखित प्रतियों में सुप्रसिद्ध नान्दी का अभाव है । (२) स्थापना में नाटककार का नाम नहीं दिया गया है। मृच्छकटिक की प्रस्तावना मे नान्दी भी है और नाटककार का नाम भी। परन्तु यह युक्ति किसी निश्चय पर नहीं पहुचा सकती । प्राकृत भाषाएँ --प्राकृतो का तुलनात्मक अध्ययन भी कुछ निश्चय नहीं करा सकता, विशेष करके इस अवस्था में जब कि हम जानते है कि चारुदत्त दक्षिण भारत का हस्तलिखित ग्रन्थ है, अतः स्वभावतः उसमें पुराने शब्द सुरक्षित रह गए हैं । अतः इस युक्ति पर विस्तार से विचार करने की आवश्यकता नहीं। पद्यरचना-दोनों नाटको के पद्यों के तुलनात्मक अध्ययन से विदित होता है कि जहाँ जहाँ पागत भेद हैं वहाँ वहाँ मृच्छकटिक के पाठ अधिक अच्छे हैं। कुछ उदाहरण देखिये : (क) चारुदत्त में यथान्धकारादिव दीपदर्शनम् (थथा और इव की पुनरुक्ति) मृच्छकटिक में-धनान्धकारादिव दीपदर्शनम् ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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