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पुराण (७) शतपश्च ब्राह्मण में प्रतिदिन इतिहास पुराण पड़ने का विधान
(३) मिन-भिन्न पुराण परीक्षित से पहले की सब घटनाओं को 'भूत' तथा महाभारत के युद्ध (पार्जिटर के अनुसार १५० ई.पू.) के १०० वर्ष की सब घटनाओं को 'भविष्यत्' कहने में एकमत हैं यह १०० वर्ष का काल सन्धि काल है। इस काल के आस-पास सारी को सासरी प्रचलित ऐतिहासिक जनश्रुतियाँ एक पुराण के रूप में संगृहीत
(8) ऐतिहासिक महाकाव्यों के समान पुराण भी माटों ने प्राचीन परम्पराप्राह लोकवादों के नाधार पर बनाए थे। उन लोकवादों को अधर्ववेद में बाडमय का एक स्वीकार करके इतिहास-पुराण का साधारण (General) नाम दिया गया है। क्या छान्दोग्य उपनिषद् और क्या प्रारम्भिक बौद्ध ग्रन्थ ( सुत्त निपात दोनों में ही बाइमय के इस अङ्ग को पंचम वेद कहा गया है, और आज तक यह पंचम वेद के ही रूप में स्वीकृत किया जाता है।
पुराणों के काल की श्रवर सीमा । सच तो यह है कि मिन-भिन्न पराण, जिस रूप में वे अाज हमें प्राप्त हैं उस रूप में, भिन्न-भिन्न काल में उत्पन्न हुए हैं।
हमारे प्रयोजन की वस्तुत: सिद्धि करने वाले महत्वपूर्ण पुराणों के काल की अवर सीमा के विषय में निम्नलिखित बाते मनन करने योग्य है--
(1) मत्स्य पुराण में श्रान्त्रों के पतन ( २३६ ई.) तक क और इसके बाद होने वाले किलकिल राजाओं का वर्णन मिलता है इस प्रकार ऐतिहासिक श्राख्यान ईसा की तृतीय शताब्दी के बगभर ___ मध्य तक पहुंच जाता है, इससे भागे नहीं बढ़ता ।
(२) विष्णु, वायु, ब्रह्माण्ड और भागवत पराण इस श्रास्यान के और आगे बढ़ाकर गुप्ता के अभ्युदय तक ले आते हैं। समुन्द्रगुप्त की