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________________ रामायण दशस्य का प्रतिज्ञापालन एवं पुत्रस्नेह अनुपम है। कौसल्या की कर्तव्यनिष्ठा और सुमित्रा की स्याग-वृत्ति अद्वितीय है। बड़े भाई की पत्नी के प्रति लचमण की श्रद्धा देखकर हम श्राश्चर्य में डूब जाते हैं। राम को मर्यादापुरुषोत्तम कहना उचित ही है। तात्पर्य यह है कि रामाध्या में इमे उच्चतम श्राचार के जीते जागते दृष्टान्त मिलते है । यही कारण है कि न केवल भारत में बल्कि बाहर भी रामायण से भूनकात में लोगों को जीवन मिला, अब मिल रहा है और भागे मिलता रहेगा। रामायण से प्राचीन कालोन श्रार्य-सभ्यता के विषय में बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका अध्ययन महत्वपूर्ण है । इससे हम प्राचीन कालीन भारत की सामाजिक और राजनीतिक अवस्था को अच्छी तरह जान सकते हैं। इसके अतिरिक इससे हमें तत्कालीन भौगोलिक परिस्थिति का भी पर्याप्त परिचय प्राम होता है। (ग) संस्करण हम रामायण को भिन्न-भिन्न संस्करणों में पाते हैं.. (१) बम्बई संस्करण ( बम्बई में प्रकाशित )। इस संस्करण में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण टीका 'राम टीकाकार की 'तिलक' है। संस्कृत में पाई जानेवाली अन्य टीकाएँ शिरोमणि' और 'भूषण हैं। (२)बंगाली संस्करण ( कलकले में प्रकाशित)। अस्यन्त उपयोगी टिप्पणियों के साथ इसका अनुवाद जी० गोरेशियो ने किया था। यह बड़ी-बड़ी पाँच जिल्दों में मिलता है । संस्कृत टीकाकार का नाम 'लोकनाथ' है। (३) उत्तर पश्चिमीय संस्करण (या काश्मीरिक संस्करण) यह लाहौर में प्रकाशित हो रहा है। इसके टीकाकार का नाम है 'कटक' 1(४) दक्षिण भारत संस्करण (मद्रास में प्रकाशित)। इसमें और बम्बई संस्करण में अधिक भेद नहीं है । उपर के तीन संस्करणों में परस्पर पर्या यह कहना कठिन है कि कौन-सा-संस्करण वाल्मीकि के असली ग्रंथ
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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