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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास अब पना लगना है कि वे सिक्के जिन पर ब्राह्मी लिपि दाई से आई गोर को लिखी हुई हैं. सिक्के नहीं, शिला लेखों को अक्षित करने के लिए वस्तुतः मुद्रा (Stamps) हैं, अत: उनके उपर वों का विपर्यस्त दिशा में खुदा होना स्वाभाविक ही है। (ग) यह बात भी याद रखने योग्य है कि एरण ( Eran ) वाले सिक्के से भी प्राचीनतर भट्टिनोल के लेखों में लिपि की दिशा बाई से दाई ओर को है। (ध डा. बुलर की पूर्वोक्त धारणाओं को जैसे चाहे पैसे लगा सकते हैं। ये धारणाएँ पूर्वोक्त वर्णमालाओं में न तो अत्यन्त साम्य ही १ डा. बुङ्कुर ने भट्टिमोलु के लेख मे एरण (Eran) के सिक्के पर और अशोक के शासनों में पाए जाने वाले प्राचीनतम - भारतीय लिपि के अक्षरों की तुलना प्राचीनतम सैमिटिक उत्कीर्ण लेखो में तथा असीरियन बाटो (Weights) मे उपलब्ध चिह्नो के साथ की है। इस तुलना के बाद उसने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि प्राचीन ब्राही लिपि के चवालीस अक्षर सेमिटिक चिन्हो के अन्दर मिल सकते हैं और सैमिटिक के सम्पूर्ण बाइस अक्षरो के प्रतिनिधि या अशज इस लिपि में मौजूद हैं। इस लिपि के निकालने वालों ने अपने निर्माण का एक नियम निश्चित करके, सीधी चलने वाली रेखा के अनुकूल चिन्ह कल्पित करने की इच्छा से विवश होकर और सब महाशिरस्क अक्षरों से कुछ ग्लानि होने के कारण कुछ सैमिटिक अक्षरी को उल्टा कर दिया था उन्हें करवट के बल लिटा दिया और सिर के त्रिकोणो या द्विकोणों को बिल्कुल हटा दिया । ब्राह्मी लिपि की असली दिशा दाई से बाई और को थी, जैसा कि डा० बुह्वर ने एरण ( Eran ) के सिक्के की सहायता से सिद्ध करना चाहा है, बाद में जब दिशा बदली गई तब अक्षर भी दाई से बाई ओर को बदल दिए गए । व्युत्पादन के ये नियम निश्चित करके उक्त डाक्टर महोदय ने एक एक सेमिटिक अक्षर लिया
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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