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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास वह बन्दी बना लिया गया । इस प्रकार बन्दी की दशा में पेरिस में रहते हुए उसने कुछ म चविद्यार्थियों को तथा प्रसिद्ध जर्मन कवि ररक श्लैगन ( Friedrich Schlegel ) को संस्कृत पढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। यह कार्य युग-प्रवर्तक सिद्ध हुधा । १८०८ ई०३ श्लैगल ने "ऑन दि लैंग्वेज ऐंड विडज़म वि इंडियन्ज' (भारतीयों की भाषा और विद्वत्ता) नामक अपना एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित किया जिससे यरोप में : 'स्कृत-विद्या के अध्ययन में एक क्रान्ति पैदा हो गई । इसी से धीरे-धीरे भाषा की विद्या के अध्ययन में तुलनात्मक रीति का प्रवेश हो गया। श्लगल के ग्रन्थ से उत्साहित होकर जर्मन जिज्ञासुओं ने संस्कृत भाषा और इसके साहित्य के अध्ययनमें बडो अभिरुचि दिखलानी शुरू कर दी । इस कथन में कोई अत्युक्ति नहीं कि यगोप में संस्कृत सम्बन्धी जितना कार्य हुश्रा है उसका अधिक हेतु अर्मनों की विद्या-प्रियता है। (७) १८५६ ई० में ऐफ बॉप (F. Bopp) ने ग्रीक, लैंडिन, जर्मन और फारसी सन्धिप्रकरण के साथ तुलना करते हुए संस्कृत के सन्धिप्रकरण पर एक पुस्तक लिखी । इससे वहाँ तुलनात्मक भाषाविज्ञान की नींव पड़ गई। (6) अब तक यूरोपियनों का संस्कृताध्ययन श्रेण्य (Classical) संस्कृत तक ही सीमित था। १८०५ ई० में कोल्शु क का 'वेद' नामक निबन्ध प्रकाशित हो चुका था, अन जर्मन अधिक गम्भीरता से वैदिक अन्थों का अध्ययन करने में लग गए। ईस्ट इण्डिया हाऊस में वैदिक अन्य पर्याप्त संख्या में विद्यमान थे ही, बस ऐफ रोजन ( F. Rosen ) नाम विद्वान् ने १८३० ई० के लगभग उन पर काम करना प्रारम्भ कर दिया । इसकी अकाल मत्यु के थोड़ेही समय पश्चात् १८३८ ई. में उसका सम्पादित 'शग्वेद का प्रथम अष्टक प्रकाशित किया गया। (१) ६ ई० में प्रकाशित भार, रॉथ (R. Roth ) के "वैद्रिक साहित्य और विकास" मासक प्रभ ने यूरोप में वैदिक
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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