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________________ दिङनाग की कुन्दमाला ३०७ बड़ा कृतहस्त है। इसने अकेली प्राकृत में ही कम से कम सतरह प्रकार के छन्द लिखे है। इसकी भाषा सुगम और रोचक है तथा छन्द विच्छित्तिशाली और आकर्षक हैं। बोज चाख की, विशेषतः महाराष्ट्री भाषा से शब्द बेरोक-टोक लिए गए हैं। इसकी शैली का एक और विशेष गुण यह है कि गीतगोविन्द और मोहमुद्गर के समान कमी कभी इसमें अन्स्यानुप्रास का भी प्रयोग पाया जाता है। (४) समय-सौभाग्य से राजशेखर का समय निश्चयतापूर्वक बतलाया जा सकता है। यह अपने आपको भवभूति का अवतार कहता है। इसने भालङ्कारिक उद्भट (वीं श०.) और आनन्दवर्धन (हवी श० ) का भी उद्धरण दिया है। दूसरी ओर इसका उल्लेख यशस्तिखक चम्पू (६६० ई० में समाप्त) के रचयिता सोमदेव ने और धारा के महाराज मुञ्ज (१७४-६६३ ई.) के आश्रित धनन्जय ने किया है। अपने चारों रूपकों में इसने अपने आपको कन्नौज के राजा महेन्द्र पाल का प्राध्यात्मिक गुरु लिखा है। इस राजा के शिलालेख १०३ और १०७ ई० के मिले हैं। इन सब बातों पर विचार करके वाजशेखर को १०० ई० के आस-पास मानने में कोई आपत्ति मालूम नहीं होती है। (११४) दिङ्नाग की कुन्दमाला। (1) छः अङ्कों वाली कुन्दमाता का प्रथम प्रकाशन, दक्षिण भारत में कुछ ही समय पूर्व प्राप्त हुई चार हस्तलिखित प्रतियों के प्राधार पर, सन् १९३३ ई० में दक्षिण भारती, ग्रन्थमाला में हुआ। इसने विद्वानों का ध्यान शीघ्र ही अपनी पोर श्राकष्ट कर लिया और तब से यह कई टीकाओं तथा अनुवादों के साथ प्रकाशित हो चुकी है। लेखक का नाम कहीं दिमाग मिलता है तो कहीं धीरनाग । प्रस्तावना केवल मैसूरवाली ही प्रति में मिलती है। इसमें कहा गया २ खण्ड ८२ के चौथे अंक पर पहली टिप्पणी देखिए ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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