SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भवभूति ३०१ (३) शैली--(क) भवभूति भावप्रवरह कति है। इसलिए यदि कालिदास की तुलना शेक्सपियर के साथ तो इसकी तुलना मिल्टन के साथ की जाती है । यही उचित भी है। यदि इसमें कालिदास का-सा माधुर्य, गौरव और व्यंजस्व नहीं है तो यह किसी घटना बा भाव (Emotion) की थोड़े ही शब्दों में हृदयङ्गम रूप से चित्रित करने में कालिदास से अधिक सिद्धहस्त है। उदाहरणार्थ, बूढ़ा कञ्चुकी अपनी आदत के अनुसार राम को 'रामभद्र' कह कर सम्बोधन करने लगता है, परन्तु तत्क्षण सम्मल कर कहता है "महाराज। (ख) प्रकृति में जो कुछ भी भीषण, घटाटोप और अलौकिक है वह संस्कृत के सब कवियों की अपेक्षा भवभूति को बड़ा प्रिय है। अनङ्कष पर्वतों, निबिड कान मों, मरझार करते हुए मरनों और दुष्प्रवेश अपस्यकाओं के इसके वर्णन वस्तुतः आँखों के सामने एक चित्र खड़ा कर देते हैं। किन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं कि इसने प्रकृति के मृदुल और कल्पनास्पर्शी रूप के दर्शनों का कभी प्रानन्द नहीं उठाय।। इसका उदाहरण देखभा हो तो देखिए इसने मालती माधव के आठवें अङ्क के अवसान पर निशीथ का कैसा नयनाभिराम चित्र खींचा है। (ग) भवभूति अपने रूपकों में नाना रसों का गम्भीर सम्मिश्रण करने में बड़ा कृतहस्त है (भूम्नां रसानां गहनाः प्रयोगाः) । सो महा १ सूक्तिग्रन्थों में भवभूति की प्रशंसा में पाए जाने वाले पत्रों में से कछ उदाहरण देखिए भन्या यदि विभति त्वं तात कामयसे तदा । भवभतिपदे चित्तमविलम्ब निवेशय ।। सुकवि-यितयं मन्ये निखिलेऽपि महीतले । भवभूतिः शुकश्चाय वाल्मीकिस्तु तृतीयकः।। भवभूतेः सम्बन्धाद् भूधरभूरेव भारती भाति एतत्कृतकारुपये किमन्यथा रोदिति भावा ॥
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy