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________________ २८६ संस्कृत साहित्य का इतिहास स्वगति का समकालीन मानकर इसके काल-शोधन का श्रम उठाया है। एक गणना के अनुसार शिवस्वाति का समय ८१ ई० के आसपास है, परन्तु पुराणोक्त इतिहास-तिथियों के आधार पर लगाई हई दूसरीगणना के अनुसार वह (शिवस्वाति) ई० पू० चौथी या पाँचवीं शताब्दी में शासन करता था। (१०६) हर्ष के नाम से प्रचलित तीन रूपक (क) प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानन्द इन तीन रूपकों की प्रस्तावना में रचयिता का नाम नृप हर्ष मिलता है। हर्ष नाम के कम से कम चार राजा इतिहास में प्रसिद्ध हैं। (१) हर्ष काश्मीर का राजा । (२) हर्ष, धारा के नृप भोज का पितामह । (३) हर्ष विक्रमादित्य, उज्जैन का राजा; मातृगुप्त का शरण्य । (४) हर्षवर्धन, कन्नौज का स्वामी । ऐच० ऐच. विल्सन ने रत्नावली का रचयिता काश्मीर के अधिपति श्रीहर्ष को (१११३-२५ ई.) ठहराया है। परन्तु यह मत ग्राह्य नहीं है; कारण, रत्नावली का उद्धरण क्षेमेन्द्र के (११ वी श० का मध्य) औचित्यालक्कार में पाँच बार, और नप जयापीड के (वीं श. का चतुर्थ पाद) सचिव दामोदरगुप्त के कुट्टिनीतम में कम से कम एक बार अवश्य पाया है। रत्नावली का रचयिता ईसा की आठवीं शताब्दी से बहुत पहले ही हुआ होगा। यह विचार कि कनौज का राजा हर्षवर्धन (६०६-६४८ ई०) ही रस्नावल्ली का रचयिता होगा १ राजतरङ्गिणी में ( अनुच्छेद ५६८) कल्हण लिखता है : तत्रानेहस्युज्जयिन्यां श्रीमान् हर्षापराभिधः । एकच्छत्रश्चक्रवती विक्रमादित्य इत्यभूत् ॥ २ रत्नावली १, ८।२, २ । २, ३ । २, ४ । और २, । १२ । ३ रत्नावली १, २४।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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