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________________ रूपक का धर्मनिरपेक्ष उद्भव डयाख्या नाटकीय दृश्य बाद के सहारे बहुत अच्छी तरह की जा सकती है। तज अप का उद्भव कैसे हुआ? इस के प्राचीनतम चिह हमें कहाँ प्र हो सकते हैं? (क) वैदिकानुष्ठानों का साक्ष्य---उपत्भ्यमान पर्याप्त प्रमाणों से यह प्रदर्शित किया जा सकता है कि रूपक के प्रायः सारे उपादानतस्व वैदिक अनुष्ठानों में विद्यमान हैं। (अ) रूपक के आवश्यक घटक हैं-नृत्य, गीत और संवाद । नृत्य का उल्लेख ऋग्वेद में मौजूद है। उदाहरणार्थ, विवाह-सूक्त में पुरनिधयाँ नव-दम्पती के आयुष्यार्थ नृत्य करती है। गीत को तो शामवेद में सभी मानते हैं। ऋग्वेद के संवाद-सूक्तों का उल्लेख ऊपर हो ही चुका है। (श्रा) वैदिक अनुष्ठान छोटी-छोटी अनेक किया त्रों के सूत्रों से प्रगुम्फित जाल थे। उसमें से कुछ में नाटकीय सत्त्व भी विद्यमान थे। यह ठोक है कि यह कोई वास्तविक नाटक नहीं था, क्योंकि नाटक का अभिनय करना ही मुख्य उद्दश्य नहीं था। अभिनेता लोग उसके द्वारा सीधा धार्मिक फल चाहते थे। (इ) महाव्रत-अनुष्ठान वस्तुतः एक प्रकार से नाटक था। इस अनुष्ठान में कुमारियाँ अग्नि के चारों ओर नाचती थीं । शूद और वैश्य का प्रकाशार्थ कलह करना वस्तुतः नाटकीय अभिनय है। (ई) यज्ञ-प्सत्रों (Sacrificial sessions) के अन्तरादों यज्ञमण्डप में बैठे हुए यजमानों और याजकों के मनोविनोदार्थ वार्तालापमय सूरू पढ़े जाते थे। इस धारणा की पुष्टि हरिवंश पुराण से होती है। (3) कई विद्वान् कहते हैं कि----नाटकों में मधमय संवाद महानत अनुष्ठान में प्रयुक्त संवाद को देखकर बढ़ाया गया है। यदि इस विचार को ठीक मान लें, तो रूपक के सब उपादान तत्व हमें वैदिक अनुष्ठान में मिल जाते हैं।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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