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________________ १० संस्कृत साहित्य का इतिहास अपनी कृतियों के विषय समकालीन वीरों के जीवनों में से कम और रामायण तथा महाभारत में से अधिक चुने (६) एक और कारण यह है कि भारतीय जोग विशेष की अपेश साधारण को अधिक पसन्द करते हैं। यहाँ as fo जब दो विरोधी पक्षों पर ऊहापोह किया जाता है, तब भी व्याख्याकारों के जीवन के सम्बन्ध में कोई बात न कहकर केवख विवादसम्बन्धिनी युक्तियों ही प्रस्तुत की जाती हैं । जब दर्शनों के भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों की व्याख्या की जाती है, तब भी ऐतिहासिक काल को गौगा रक्खा जाता है । (७) पुराने साहित्य के अधिक ग्रन्थ दमें कुटुम्ब-ग्रन्थों के या सम्प्रदाय-ग्रन्थों के या मठ-गुरु-मन्थों के रूप में मिले हैं, जिनके रचविताओं तक के नामों का भी उल्लेख नहीं मिलता । (८) बाद के साहित्य में जब रचयिताओं के नाम मिलते हैं, सब वे नाम भी कुटुम्ब (या गोत्र ) के रूप में मिलते है। फिर, यह पता कि कोई कवि विक्रमादित्य के या भोज के राज्य-काल में हुआ, ऐतिहासिक दृष्टि से हमारे लिए केवल इतना ही सहायक हो सकता है, जितना यह पता कि यह घटना एक जॉर्ज के या एक एडवर्ड के राज्य काल में हुई । ( 8 ) यदि किसी रचयिता का नाम दिया भी गया है तो उसके माता-पिता का नाम नहीं दिया गया। एक ही नाम के अनेक रचयिता हो सकते हैं । (१०) कभी-कभी एक ही नाम भिन्न-भिन्न रूपों में पाया जाता १. यह तुलना करके देखिए कि 'नैषध' पर तो अनेक टीकाएं हैं, परन्तु 'नवसाहसांकचरित' जो ऐतिहासिक रचना है, विस्मृति के गर्भ मे जा पड़ा है । २. यह मनोवृत्ति भारत में अब तक पाई जाती है । किसी ग्रन्थ का लेखक गुप्त प्रसिद्ध है तो किसी का शर्मा, किसी का राय तो किसी का चक्रवर्ती | नाम के प्रारम्भिक भाग में इतना महत्त्व नहीं समझा जाता, जितना इन सरनामो मे ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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