SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ संस्कृत साहित्य का इतिहास एनियन, आर्मीनियन, फ्राइजियम और टोखारिश इत्यादि नाना भाषाएँ इसी वर्ग से सम्बद्ध बताई गई है और हिटाइट तथा सुमेरियम जैसी अन्य अनेक भाषाएँ भी भविष्य में इसी वर्ग से सम्बद्ध सिद्ध की जाने की आशा है । (ख) तुलनात्मक पौराणिक कथा-विज्ञान -- तुलनात्मक भाषाविज्ञान की सहायता से तुलनात्मक पौराणिक कथा-विज्ञान में भी काफी आगे बढ़ना सम्भव हो गया है । यह मालूम हुआ है कि संस्कृत के देव, भाग, यज, श्रद्धा तथा अन्य कर्मकाण्डगत शब्दों के लिए भारोपीयवर्ग की भिन्न-भिन्न भाषाओं में इन्हीं से मिलते जुलते शब्द पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ देवताओं का भी पता लगा है, जो भारोपीय का से सम्बन्ध रखते हैं। उदाहरणार्थ- संस्कृत में >> पृथिवी मातर लेटिन में अश्विनौ पर्जन्य: " टैरा मेटर यौस-क्यूरि पकु निजा 33 लिथुएनियन में वरुणास् "" यूनानी में औरेणॉस देखने की विशेष बात यह कि उल्लिखित भारोपीय देवताओं के रूप free- free भाषाओं में प्राय: समान ही हैं 1 (ग) यूरोपीय विचारों पर प्रभाव - भारतीय लोगों के सबसे गम्भीर और सब से उत्तम विचार उपनिषदों में देखने को मिलते हैं । दाराशिकोह ने अठारहवीं शताब्दी के मध्य के आस पास उनका अनुवाद फारसी में करवाया था। बाद ( १७७५ ई० ) में क्वे टिल डुपैरन ने उस फारसी अनुवाद का अनुवाद लैटिन में किया। शापनहार ने इसी फारसी अनुवाद के अनुवाद को पढ़कर उपनिषदों के तत्व तक पहुँचकर कहा था - 'उपनिषदों ने मुझे जीवन में सान्वना दी, यही मुझे मृत्यु में सांत्वना देंगे ।" शापनहार के दार्शनिक विचारों पर उपनिपदों का बड़ा प्रभाव पड़ा । जर्मन और भारतीय विचारों में तो और भी अधिक आश्चर्यजनक
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy